पृष्ठ:हिन्दी काव्य में निर्गुण संप्रदाय.djvu/४१४

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A ३३२ हिन्दी काव्य में निगुण संप्रदाय कबीर ने ईश्वरत्व की उपलब्धि की थी। चेलों को किसी परंपरा का स्थापन मात्र कर देना ही पंथ नहीं। यह तो वर्णव्यवस्था का ही अन्य रूप है।" कबीरपंथी महंत फूलदास से उन्होंने कहा था कि, "कबीर द्वारा प्रदर्शित मार्ग को तुमने मिटाकर अपने निजी मतानुसार नवीन पंथ चला दिया। जो कुछ कबीर ने कहा था वह श्रात्मा की मुक्ति के लिए था, किन्तु उसके स्थान पर तुमने एक नवीन जाल बिछा दिया ।" उन्होंने इस बात का स्पष्टोकरण किया कि किस प्रकार कबीर की समझी जानेवाली रचनाओं में बतलाये गये विधिपरक आदेशों का अभिप्राय सच्चे मार्ग के प्रतिपादन का लाक्षणिक वर्णन मात्र है। "नारियल का फोड़ना वा मोड़ना भौतिक मन का मारना और श्रात्मा का अपने ईश्वरीय सात की ओर जाग्रत होकर मुड़ जाना है। चौका का अर्थ पदों को केवल मुख से गाने के लिए एकत्रित होना ही नहीं है, यह वास्तव में, वह स्थिति है जिसमें अंतःस्थित ईश्वरीय स्वरैक्य की प्रति- ध्वनि निकलती है । पान का बीड़ा वह हृदय है जो भक्ति के रंग में - 1-संतमता बिधि एकहि जाना । नाम कही विधि प्रान हि पाना ॥ तासे तुमको बूझ न आवे । अनि अनि नाम धरे विधि गावे ।। पंथ नाम मारम का होई । मारग मिले पंथ है सोई ।। पंथ कबीर सोई है भाईं। कहै कबीर जहि मारग जाई ।। ये नहिं पंथ कहावें भाई । चेला करि सिख राह चलाई ।। ये सब जाति पाँति कर लेखा। यासे गुरु सिख तरत न देखा ॥ --वही, पृ० १८४ व १६७ ।

  • -येहि कबीर जो राह बताई। मन मत अपनी गह चलाई ।।

वही, I, पृ० १८४।