पृष्ठ:हिन्दी काव्य में निर्गुण संप्रदाय.djvu/४१७

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षष्ठ अध्याय अनुभूति को अभिव्यक्ति अाध्यामिक अनुभूति को अभिव्यक्ति के लिए भाषा का साधन यद्यपि अपर्याप्त है और उसके अभिव्यक्त रूप के अभिप्राय को पूर्णतः अवगत कर लेना भी दूसर के लिए अत्यन्त कठिन १. सत्य का है फिर भी उस एकमात्र सत्य के अनुभव के आनंद साधन को अपने भीतर छिपा न सकने के कारण उसका अनुभवी उसे प्रकट करने के प्रयत्नों में लग जाता है और इस प्रकार को चेष्टा में ही उसके भीतर से एक ऐसी काव्यसरिता फूट निकलती है जो सत्य के रहस्य से परिचित होने की अभिलाषा में उसके भीतर पैठनेवालों के लिए एक उद्धारक का काम दे देती है। वास्तव में सत्य की अभिव्यक्ति के लिए काव्य एक स्वाभाविक साधन है। आत्मद्रष्टा की अनुभूति यदि व्यक्त होना चाहे तो वह संगीत की ध्वनि से गुंजित हो उठनेवाले काव्य के रूप में ही प्रकट होती है। कहते हैं कि सेंटपाल किसी के साथ पत्रव्यवहार करते समय भी सत्य के कथन के इस एकमात्र साधन अर्थात् कविता का ही प्रयोग करने लगते थे । * संस्कृत साहित्य-शास्त्र के मर्मज्ञों ने काव्य के आनंद को

  • -अंडरहिल 'दि लाइफ़ अाफ दि स्पिरिट ऐंड दि लाइफ़ अाफ़ टुडे ।'

पृ० ४२।