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पृष्ठ:हिन्दी काव्य में निर्गुण संप्रदाय.djvu/४३४

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. ३५२ हिन्दी काव्य में निर्गुण संप्रदाय अपने कटने का डर नहीं पर अब तू अपने घोंसले की ओर उड़ जा।" यहाँ पर शरीर (वृक्ष) अधिक अवस्था पा जाने पर प्रात्मा ( पक्षो ) को सचेत कर देता है कि आती हुई मृत्यु ( काटे जाने ) के लिए खेद न कर ब्रह्म में लीन हो जाने का प्रयत्न करो। पक्षी के लिए उड़कर अपने घोंसले में चले जाने का यही तात्पर्य है नीचे दी हुई चेतावनी में सूर्य के प्रकाश बिना मुरझाती हुई उस कमलिनी का वर्णन है जिसके चारों ओर उसे जीवन प्रदान करने- वाला जल भरा हुश्रा है, कमलिनी मनुष्य है, जल ब्रह्मतत्त्व है क्योंकि वहो अात्मा के लिए आध्यात्मिक पोषण प्रदान करता है और सूर्य का प्रकाश सांसारिक वैभव के लिए आया है । हे कमलिनी तू क्यों मुरझाई जा रही है ? तेरे निकट तो तालाब का पानी भरा हुआ है ? जल से ही तू उत्पन्न हुई थी और उसी में रहती भी हैं; वही तेरा घर है । न तो तेरे नीचे किसी प्रकार की गर्मी है और न ऊपर से भाग ही जल रहो है; तेरी लगन किससे लगी हुई है ? कबीर का कहना है कि जो जल में मग्न है वह मेरी समझ में मर नहीं सकता।" जो कोई एक मात्र नित्यवस्तु ब्रह्म में लीन हो गया है वह वास्तव में अमर है । और फिर सन्ध्या के निकट आते ही घने बादल घिर आये, अगुश्रा जंगल में राह भूल गये और दुलहिन दुलहे से दूर पड़ गई। X-बाढ़ी पावत देख करि तरवर डोलन लाग । हमें कटै की कुछ नहीं पंखेरू घर भाग ।। वही पृ० ७२ । 8-काहे री नलिनी तू कुम्हिलानी, तेरेहि नालि सरोवर पानी ॥टेक॥ जल मैं उतपति जल मैं वास, जल मैं नलिनी तोर निवास ॥ ना तलि तपति न ऊपरि प्रागि, तोर हेतु कहु का सनि लागि । कहै कबीर जे उदिक समान, ते नहिं मुए हमारे जान ।।६४।। क० ग्रं॰, पृ० १०८ । .