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पृष्ठ:हिन्दी काव्य में निर्गुण संप्रदाय.djvu/४३३

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षष्ठ अध्याय ३५१ मास को निकट श्राता हुआ देखकर जंगल मन ही मन रोने लगा। ऊँची शाखाओं पर लगे हुए जो नये-नये पत्ते हैं वे भी अब क्रमशः पीले ही पड़ते जायेंगे"। इसी प्रकार उन्होंने मालिन द्वारा तोड़े जानेवाल नये-नये फूलों का सांसारिक सुखों को क्षणिकता दिखलाने के लिए रूपक बाँधा है जैसे मालिन को आती हुई देखकर फूलों की कलियाँ चिल्ला उठी और कहने लगी कि आज उसने फूलों को तोड़ लिया, कन हमारी भी बारी आ जायगी! + फिर 'दावानल द्वारा अधजली लकड़ी खड़ी-खड़ी पुकार कर कह रही है कि कहीं लोहार के हाथों न पड़ जाऊँ नहीं तो वह दुबारा जला देगा:” का उदाहरण देकर वे उस मनुष्य का वर्णन करते हैं जो सांसारिक प्रपंचों को आँच से दग्ध होने के कारण घबराकर सोचने लगता है कि कहीं मृत्यु का भो भय उपस्थित न हो जाय। यहाँ पर हम उनके कुछ और ऐसे उदाहरण देते हैं जिनमें उन्होंने जीवन की वास्तविकता की ओर निर्देश करते हुए निर्वेदभरे भावों से पूर्ण चित्र सफलतापूर्वक प्रदर्शित किये हैं। वे कहते हैं कि “बढ़ई को आता देख कर 'वृक्ष काँपने लगा और कहने लगा कि हे पक्षी मुझे

  • -फागुन आवत देखकर बन रूना मन माँहि ।

ऊँची डाली पात हैं दिन-दिन पीले थाँहि ।। क० ग्रं॰, पृ० ७२ । +-मालिन पावत देखि करि कलियाँ करी पुकार । फूले-फूले चुनि लिए काल्हि हमारी बार ॥ वही, पृ० ७२ ।

-दौं की दाधी लाकड़ी ठाढ़ी कर पुकार ।

मति बस पड़ौं लुहार के जालै दूजी बार ।। वही पृ० ७३ ।