पृष्ठ:हिन्दी काव्य में निर्गुण संप्रदाय.djvu/४३९

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षष्ठ अध्याय १ करते हैं।"। नानक कहते हैं कि "सब लोग उस ,कत की पत्नियां हैं और उसके लिए श्रृंगार करते हैं"+ और शिवदयाल ने भी कहा है कि "अब दुलहिन, प्रियतम का साथ करो, तुम अपने मैके में हो और वह श्राकाश में है। प्रेम की दो दशाएँ हैं जिनमें से एक संयोग की है और दूसरी वियोग की। भारतीय साहित्यिक भाषा में ये क्रमशः 'संयोग' व 'विप्र- लंभ' की कही जाती हैं। सूफ़ी फकीर इन शब्दों के स्थान पर क्रमशः 'विसाल' व 'फिराक' के प्रयोग करते हैं और निर्गुणियों ने इन्हीं को 'मिलन' व 'विरह' नाम दिया है। निर्गणियों का 'मिलन' पृथक्त्व की दशा का संयोग नहीं जैसा अनेक सूफ़ियों में देखा जाता है और इसी कारण उसका विस्तृत वर्णन यहाँ नहीं मिलता। वह पूर्णत: लीन हो जाने का भाव है। संयोग के होते ही प्रेमी एवं प्रेमपात्र की सारी विभिन्नताएं नष्ट हो जाती हैं और खेल समाप्त हो जाता है। यह बात केवल विशिष्टाद्वैती निर्गुणियों में नहीं पाई जाती, जो पृथकत्व की दशा के संयोग में विश्वास करते हैं; किंतु इन लोगों ने भी उस संयोग का विस्तृत विवरण नहीं दिया है। परात्पर के साथ मिलन की चाह को सूचित करनेवाले 'विरह' का विवरण उनके यहाँ विशद रूप में पाया जाता है। इस विषय से संबंध रखनेवाली कुछ कविताएँ रण रूप से ललित हैं और उनका सौंदर्य मनोहर अभिव्यक्तियों में परिस्फुट । -हम सब नारी एक भरतार, सब कोई तन करै सिंगार । बानी, ( ज्ञानसागर) पृ० २२२ । +--सबे कंत सहेलिया, सगलीा करहिं सिंगार । गुरु ग्रंथ साहब, पृ० २८॥ --दुलहिन करे पिया का संग, दुलहा तेरा गगन बसेरा तू बसे नैहर अंग । • सारबचन, पृ० ३७७...