पृष्ठ:हिन्दी काव्य में निर्गुण संप्रदाय.djvu/४३८

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

हिन्दी काव्य में निर्गुण संप्रदाय पुरुष भक्तों को पुरुष नामों के अतिरिक्त कोई न कोई स्त्री-नाम भी रखने पड़ते हैं। फिर भी हिन्दी कविता की कृष्णमयो शाखा में भो मीराबाई के सिवाय अन्य किसी भी कवि में प्रेम का रूपक उतना स्पष्ट नहीं है। यद्यपि निर्गुण काव्य को प्रेम-सम्बन्धी रूपक सूफियों से ही मिले हैं तथापि सूफी व भारतीय परंपराओं में विशिष्ट अंतर लक्षित होते हैं। फारसी साहित्य में कोव्यात्मक वर्णन के लिए साधारणतः स्त्री को रिझाने के लिए पुरुष की ओर से किये गये प्रयत्न ही आधार बनाये जाते हैं, किन्तु भारतीय साहित्य के अंतर्गत सी का पुरुष के लिए प्रदर्शित प्रेम-विरह अधिक विस्तार के साथ निरूपित किया जाता है। फारसी में मजनूं लैला के लिए श्राकाश-पाताल एक कर देता है किन्तु लैला उससे उतनी प्रभावित नहीं जान पड़तो; उधर भारतीय नायिका सभी प्रेमकाव्य की पुस्तकों में अधिक कष्ट झेलती हुई देखी जाती है। अतएव यह उपयुक्त है कि फ़ारसी की परंपराओं का अनुसरण करने- वाला सूफ़ो कवि परमात्मा को पत्नी के रूप में प्रदर्शित करे। भारतीय परंपरा का अनुसरण करनेवाले कबीर इसके विपरीत परमात्मा को पति के रूप में स्वीकार करते हैं क्योंकि इस प्रकार प्रकट किया हुआ एक व्यक्ति का प्रेम भेंट के रूप में होता है जहाँ परमात्मा-द्वारा अपने जीवों के लिए प्रदर्शित प्रेम स्वभावतः दया का रूप ग्रहण कर लेता है। निगुणी के लिए वहो एकमात्र पुरुष है और अन्य सभी उसी एक को परिनयाँ हैं और उनका कर्तव्य है कि उसे प्रसन्न करने के लिए सब कुछ करें । कनीर ने कहा है, "मैंने उस एकमात्र अविनाशी स्वामी के साथ विवाह कर लिया है ।”* दादू का कहना है कि, "हम सभी कोई उस एक पति की पत्नियाँ हैं और उसी के लिए अपना शृंगार किया -कहै कबीर हम ब्याहि चले हैं, पुरिष एक अविनासी । कबीर ग्रं॰, पृ० ८६॥