पृष्ठ:हिन्दी काव्य में निर्गुण संप्रदाय.djvu/४४१

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षष्ठ अध्याय . विरह की दशा में विपरीत प्रभाव डालने लगती है । बुल्ला साहब ने कहा है, "हे प्रियतम, मेरे ऊपर काली घटाएँ घिर रही हैं, सूनी सेज भयंकर जान पड़ती है और मैं विरह की आग से जल रहा हूँ। प्रेम का मार्ग यहाँ है । तुम्हारे वरणों से बंधा हुआ होने के कारण तुम्हें मैं क्षण भर के लिए भी भूल नहीं पाता | बुल्ला तुम्हें बलि जा रहा है और उसका तुम्हारी प्रतीक्षा में उत्सुक रहना बद नहीं होता।" प्रेम उस दिन की पाशा करता है, "जब मैं उन्हें जिनके लिए मैंने शरीर धारण किया है भरपूर प्रालिंगन करूँगा।" वह अपने प्रियतम के लिए प्रत्येक प्रकार की, प्राग्रह वा अन्य बातों से भरी युक्तियों का प्रयोग करती है वह उससे अनुरोध करती है, और उलाहना देती है, उसके वचन पालन की योग्यता में संदेह करती है और अपने दुःखों का वर्णन करती हुई उसके हृदय को पिघलाना चाहती है। उसका कहना है कि, "हे दीनदयालु जबसे मैंने तुम्हारे विषय में सुना है तब से मेरी दशा ही बदल गई है। तुम्हारा कहला कर मैं और किसकी शरण जाऊँ। मैंने तुम्हारे प्रेम का बाना पहन जिया है और अब तुम्हीं मेरो एकमात्र श्राशा बने हुए हो। हे मुरारी, तुम जैसा अन्य कोई भीयशस्वी नहीं है और मैं पुकार कर भारी। -देखो पिया काली घटा मोपै सुन्नि सेज भयावन लागी मरौं विरह की जारी ।। प्रेम प्रीति यहि रीति चरन लगु, पल छिन नाहिं बिसारी ॥ चितवत पंथ अंत नहिं पायो, जन बुल्ला बलिहारी ॥ संतबानी संग्रह, पृ० १७२। t-वे दिन कब आवेंगे माइ । जा कारणि हम देह धरी है मिलिबो अंग लगाइ । क० ग्रं॰, पृ० १६१ ।