पृष्ठ:हिन्दी काव्य में निर्गुण संप्रदाय.djvu/४५

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४. निबंध विषयक विशेष बाते डा• बड़थ्वाल के निबंध के शीर्षक 'दि निर्गुण स्कूल आफ़ हिंदी पोएट्री' अर्थात् 'हिंदी काव्य का निर्गुण संप्रदाय मे स्पष्ट है कि वे संतों के उस संप्रदाय का परिचय देने जा रहे हैं जिसमें गिने गये लोगों की रचनाएँ, हिंदी कविताओं में सम्मिलित की जाती हैं । तदनुसार, इन संतों पर विचार करते समय हमारा ध्यान सर्वप्रथम इनके साहित्यिक परिचय की ही ओर आकृष्ट होता है। कविताएँ या तो भावप्रधान या विषय- प्रधान होती हैं । अथवा भापाप्रधान कहलाती हैं जिनमें रचनाशैली वा काव्यकला की ओर विशेष ध्यान दिया गया रहता है। हिंदी साहित्य के इतिहास में हमें इन दोनों प्रकार की कविताओं के उदाहरए यथेप्ट रूप में मिलते हैं। रीति-काल की प्राय: सभी कविताएँ उक्त 'भाषा प्रधान' की कोटि में आती हैं और भक्तिकाल के संतों की कविताएँ उक्त दोनों ही कोटियों में रखी जा सकती हैं। डा० बड़थ्वाल ने अपने निबंध में इसी कारण संतों के भाव अथवा विषय को ही प्रधानता दी है और उनकी भाषा को गौण स्थान प्रदान किया है। उन्होंने इन संतों- द्वारा रची गयी कविताओं को वस्तुतः कविता की कोटि में न मानकर उन्हें इनकी भावाभिव्यवित का एक साधन-मात्र माना है । उनके निबंध का एक बहुत बड़ा अंश ( दो तिहाई से भी कहीं अधिक ) इन संतों के सिद्धांतों, साधनाओं तथा विशेषताओं की ही चर्चा में लग गया है। उसके छ: में से केवल एक अध्याय के ही अंतर्गत, इनकी भाषा वा रचना-शैलियों का वर्णन है और, अंत में, परिशिष्ट के भीतर इनके कतिपय ग्रंथों की एक परिचयात्मक सूची भर दे दी गई है । निबंध के शेष भाग में या तो संतमत के उदय-काल की परिस्थितियों का दिग्दर्शन है अथवा इनका थोड़ा-बहुत परिचय दिया गया है। "हिंदी-काव्य का निर्गुगा संप्रदाय" प्रस्तुत निबन्ध का विशेष उपयुक्न शीर्षक नहीं है और इस पर डॉ. बड़थ्वाल ने निवन्ध की