'प्रस्तावना' में विचार भी किया है । हिंदी काव्य, वा वस्तुतः किमी अन्य भाषा के काव्य के क्षेत्र में भी रिसी ऐसे संप्रदाय की चर्चा करना जो साहित्यिक न हो, उपयुक्त नहीं जान पड़ता। वैसी दशा में 'हिंदी काव्य की निर्गुण धारा' संभवतः कुछ अधिक उचित शीर्षक होता, किंतु उसमें भी अधिकतर साहित्यिक बातों का ही समावेश हो पाता और 'निर्गुण मत' की विभिन्न साधनाओं और सिद्धांतों का विस्तृत विवरण देने के लिए उसमें पर्याप्त स्थान नहीं मिल पाता, जो डा० बड़थ्वाल को अभीष्ट था और जिसके लिए ही उन्होंने प्रस्तुत निबन्ध की रचना की थी। निबंध के कुछ अंशों का हिंदी में स्वयं अनुवाद करते समय उन्होंने, इसी कारण, उसके शीर्षक 'हिंदी काव्य का निर्गुण संप्रदाय' को 'हिंदी काव्य में निर्गुण संप्रदाय के रूप में परिणत कर दिया है। फिर भी उन्होंने निबंध के अंतर्गत एक अध्याय इन संतों की रचनाशैली के सम्बन्ध में भी दे दिया है और उसका नामकरण ‘एक्सपीरियंस एक्स्प्रेस्ड' अर्थात् 'अनुभूति की अभिव्यक्ति' के रूप में किया है जो, उनके दृष्टिकोण से, पूर्णत: उचित था । डा० बड़थ्वाल ने अपने निबंध के इस अंश में संतों की सत्यानुभूति तथा उसके व्यवतो. कररण की कठिनाइयों से प्रारंभ किया है । इस प्रकार का व्यक्तीकरण ही, वास्तव में, उस रहस्यवाद का भी आधार है जिसके उदाहरण इन संत कवियों की रचनाओं में प्रायः सब कहीं मिलते हैं । अतएव इस स्थल पर यदि निर्गुण संप्रदाय के लोगों को रहस्यानुभूति की एक
- पुस्तक के कुछ भाग के छप जाने पर प्राप्त हुई, डा० बड़थ्वाल के
हिंदी अनुवाद की, उनके द्वारा संशोधित एक प्रति में, इसका नाम 'हिंदी काव्य की निर्गुण धारा' ही दिया गया है उनके इस संशोधन को हम अगले संस्करण में ही अपना सकेंगे 'संपादक