षष्ठ अध्याय चाहिए वह केवल उन गुप्त प्रेमियों में ही सम्भव है जिनके सम्बन्ध में अनौचित्य एक आवश्यक अंग रहा करता है कहा जाता है कि इस प्रकार का प्रेम कभी-कभी लाभदायक सिद्ध हो जाता है। 'डिवाइन कमेडिया' नामक प्रसिद्ध काव्यग्रंथ, उस प्रेम- द्वारा ही अनुप्राणित रहा जिसे, उसके रचयिता इटालियन कवि दान्ते ने अपनी प्रियतमा विट्राइस के प्रति, उसे दूसरे की पत्नी हो जाने पर भी अपने हृदय में संचित कर रखा था। जर्मन कवि गेटे को भी बहुत सी कविताएँ उसकी कामुकता का ही फलस्वरूप थीं। वे गोपियाँ भी जिनमें राधा सबसे प्रमुख थी और जो वैष्णवों के अनुसार भक्तों की दृष्टि में रखी जाने के लिए, आदर्श रूप थीं, परकीया ही थीं। परन्तु निर्गुणियों को, कबीर के अनुसार, इस बात में स्वभावतः विश्वास था कि, “परमात्मा, यदि चाहे तो, अन्य पापों को क्षमा भी कर सकता है, किंतु कामुक का समूल नष्ट हो जाना निश्चित है ।*" इसी कारण वे उक्त प्रकार के दुराचार का कभी समर्थन नहीं कर सकते थे और न उन्होंने किया ही है । अपने प्रतीकों का आधार, उन्होंने उस पूर्वराग के आदर्श को स्वीकार किया है जो किसी कामिनी के हृदय में अपने प्रियतम के गुणों को श्रवण करने पर उत्पन्न होता है और जो अपनी प्रगाढ़ता के ही कारण उसे उसके निकट अाकृष्ट कर दोनों के परिणाम के सूत्रों द्वारा ला जोड़ता है । निर्गुणी संतकवि, अपनी अन्तरात्मा में प्रविष्ट हो जाने के कारण, ऐसी कल्पना के स्तर तक उठ जाता है जो चित्र के साथ-साथ पवित्रता के गौरव से भी युक्त रहती है। अपने एक प्रेमगीत के स्वरूप को प्रकट करते हुए कबीर ने कहा है कि, "मैंने अपने शब्दों में आत्मोपलब्धि के साधनों का सार देकर --और गुनह हरि बकससी कामी डार न मूल । क० ग्रं॰, पृ० ४० ( सा० १७)
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