पृष्ठ:हिन्दी काव्य में निर्गुण संप्रदाय.djvu/४७५

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परिशिष्ट २ . के कारण, उनके दर्शन योगियों को उपलब्ध न हो सके ( लक्ष्मण बोध, भा० १)। ये उपाख्यान इन पुस्तकों में केवल थोड़े से ही परिवर्तनों के साथ 'यत्र-तत्र दिये मिलते हैं। और इनके उल्लेख 'कबीरसागर' के बहुत से अन्य ग्रन्थों में भी पाये जाते हैं। इन ग्रंथों में से कई एक में कबीर के, कलियुग में रहकर किये गये उद्धार सम्बन्धी प्रयत्नों के वर्णन मिलते हैं । हजरत मुहम्मद (मुहम्मद बोध, भा० ६), बल्ख के सुलतान अब्राहम अधम ( सुल्तान बोध, भा०६), विष्णु के वाहन गरुड़ ( गरुड़ बोध भा० ५ ), लंका के राजा अमरसिंह जिसे कबीर ने भयंकर नरकों को दिखला दिया था (अमरसिंह बोध, भा० ४ ) । काशी के वीरसिंह बघेन जिन्होंने कबीर की मन्यु के अनंतर नवाब बिजली खाँ के विरुद्ध युद्ध ठानने की तैयारी की थी (वीरसिंह बोध, भा० ४), जलंधर के राजा भूगाल (भूपाल बोध, भा० ५) जगजीवन नाम के एक राजा ( जगजीवन बोध, भा०५) दिल्ली के शाह सिकंदर लोदी और अहमदाबाद के नवाब दरियाखाँ ( कमालबोध, भा० १०) श्रीनगर ( गढ़वाल ) के राजा राममोहन जिसका राज्य कश्मीर तक फैला हुआ कहा जाता है (गुरु माहात्म्य, भा० ११) श्रादि सभी के लिए कहा गया है कि उन्होंने कबीर को शरण मांगी थी और उन सबको उन्होंने वचन लिया था । ज्ञानप्रकाश ( भा० ४ ) में इस बात का पौराणिक वर्णन प्राता है कि धर्मदास का शिष्यत्व किस प्रकार प्राप्त किया था। चौका स्वरोदय ( भा० ७ ) और सुमिरण बोध ( भा० १० ) में कबीरपंथ में प्रचलित उपासना-पद्धतियों की चर्चा पाती है और उनमें भिन्न-भिन्न प्रकार की चौका, भारती, तिनका तोड़ना श्रादि सम्बन्धी विधियों के वर्णन पाये जाते हैं । अमरमूल (भा. ७) में पान परवाना, पारस एवं अमरमूल की विधियों की भी उपयोगिता बतलायी गई है। विवेकसागर ( भा० ३) तथा धर्मविधि ( भा. 8) में साधुओं एवं गृहस्थों के प्राचार-धर्म निरूपित किये गये हैं। कायापंजी, पंचमुद्रा, .