पृष्ठ:हिन्दी काव्य में निर्गुण संप्रदाय.djvu/४७९

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परिशिष्ट २ ३६७. समय भी होगा । सिद्धांतों के विकास को ध्यान करते हुए, कहा जा सकता है कि 'ज्ञानसागर' इससे कुछ प्राचीन होगा और अन्य पोछे के होंगे। कबीर के शिष्यों की रचनाओं में धर्मदास की शब्दावली (वेल- वेडियर प्रेस ) महत्वपूर्ण है। कबीरपुत्र कमाल को भी बानी मिलती है यद्यपि वह अभी तक छपी नहीं है । सिख, गुरुओं की रचनाओं का सबसे महत्वपूर्ण व प्रामाणिक संग्रह 'श्रादि ग्रन्य' है। यद्यपि, सिखधर्म भी श्राज अन्य धर्मों की ही भाँति एक संप्रदाय बन गया है फिर भी 'श्रादि ग्रंथ' सांप्रदायिक विचारों से नितांत शून्य है । यह भले नहीं कहा जा सकता कि सिख गुरुत्रों के अतिरिक्त . अन्य सन्तों की बानियाँ जो उसमें संगृहीत हैं संम्मिश्रण युक्त हैं। पुस्तक साधारण प्रकार से गुरुमुखी लिपि में छपा करती है, किंतु तारनतरन के एम० एस० वैद्य ने इसका एक नागरी लिपि में छपा संस्करण भी निकाला है । डा. ट्रम्प ने इसका अनुवाद किया था और मेकानिफ़ साहब ने भी इसका एक पूरा व उपयोगी अनुवाद कर डाला है । इसको प्रारम्भिक रचना 'जपुजी' का प्रो० तेजसिंह द्वारा किया हुआ अनुवाद सुन्दर व शुद्ध भी है, 'संतयानी संग्रह' के सम्पादक ने गुरु नानक की कुछ रचनाओं को संगृहीत किया है जो अन्यत्र नहीं मिलतीं। पता नहीं उन्हें कौन सा महत्व प्रदान किया जाय । दादू को बानियों के भी कई अच्छे संस्करण उपलब्ध हैं, किंतु यह कहा नहीं जा सकता कि वे क्षेपकों से कहाँ तक युक्त हैं । पं० चन्द्रिका- 'प्रसाद का संस्करण सबमें श्रेष्ठ समझा जाता है। उसके अतिरिक्त पं० सुधाकर द्विवेदी द्वारा सम्पादित काशी-नागरी-प्रचारिणी सभा वाला संस्करण, बेलवेडियर प्रेसवाला संस्करण ( दो भाग ) और ज्ञानसागर वाला संस्करण भी उपलब्ध हैं । पं० तारादत्त गैरोला ने दादू के चुने हुए पदों का अंग्रेजी में अनुवाद किया है । यह अनुवाद ( 'साम्ल