पृष्ठ:हिन्दी काव्य में निर्गुण संप्रदाय.djvu/४८०

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- हिन्दी काव्य में निर्गुण संप्रदाय श्राफ दादू' इंडियन बुकशाप, बनारस ) शुद्ध व विश्वसनीय है। दादू के शिष्यों में से केवल कुछ की हो रचनाएँ छपी हैं। सुन्दरदास का 'सवैया' ग्रंथ वा 'सुन्दर विलास' ( वेलवेडियर प्रेस ) बहुत लोकप्रिय है । जयपुर के पुरोहित हरनारायण शर्मा ने इनकी चुनी हुई रचनाओं का एक सुन्दर संग्रह 'सुंदरसार' ( का० ना० प्र० सभा ) नाम से निकाला है और इनकी सारी रचनाओं का भी एक प्रामाणिक संस्करण तैयार किया है ।* सुंदरदास की रचनाओं का एक बहुत अच्छा संस्करण अहमदाबाद के सैयद साले मुहम्मद नूरानी ने, सिद्ध वेदांती व दादूपंथी पीताम्बर जी द्वारा संपादित कराकर, प्रकाशित किया है रज्जबजी की भी 'बानी' प्रकाशित हो चुकी है। दादू के अन्य अनेक शिष्यों की रचनाओं को भी मैंने उस बहुमूल्य हस्तलेख से पढ़ा है जिसे पं० गैरोला ने, बड़ी उदारता के साथ मुझे देखने को दिया था और जिसे जयपुर के डा० दलजीतसिंह ने उन्हें भेंट किया था। मैंने इसे, पं० गैरोला के ही स्थान के नाम पर, पौड़ी हस्तलेख' की संज्ञा दे दी है। यह हस्तलेख आध्यात्मिक साहित्य का एक वास्तविक पुस्तकालय ही कहा जा सकता है। इसमें चार खंड हैं। पहले में 'पंचयानी', है जिसमें दादूपंथ द्वारा मान्य दादू, कबीर, नामदेव, रैदास, और हरिदास को रचनाएँ गरीबदास के भी पदों के साथ संगृहीत हैं । दूसरे में गोरख- नाथ, चौरंगीनाथ, कणेरीपान, बालानाथ जैसे बहुत से योगियों की बानियाँ दी गई हैं। तीसरे में दादू के कतिपय शिष्यों, जैसे सुन्दरदास ( सवैया, ज्ञानसमुद्र और अष्टक ) गरीबदास (अनभय प्रबोध ग्रंथ ) रज्जब जी श्रादि की रचनाएँ सम्मिलित हैं। चौथे में रजब-द्वारा किया . -अब यह संस्करण, कलकत्ते की 'राजस्थान रिसर्च सोसाइटी' द्वारा, सं० १९९३ में प्रकाशित भी हो चुका है । इसका नाम 'सुंदर ग्रंथावली' है जिसके दो खण्ड हैं । -अनुवादक