हिन्दी काव्य में निर्गुण संप्रदाय के 'संत सरस' नामक ग्रंथ को सभा में सुरक्षित हस्तलिखित प्रति से मुझे कुछ भी लाभ न हो सका। महामहोपाध्याय गौरीशंकर हीराचंद श्रोमा के पास दीनदरवेश की बानियों का एक संग्रह है किंतु मुझे यह भी न मिला। राधास्वामी साहित्य में से शिवदयाल के सारबचन (दो भाग ) राय सालिगराम बहादुर की प्रेमबानी ( पाँचवाँ भाग) और जगतप्रकाश तथा साहिब जी के नाटक 'स्वराज्य' के अध्ययन करने का मुझे अवसर मिला था। संत साहित्य को प्रकाश में लाने के कार्य में वेलवेडियर प्रेस ने विशेष भाग लिया है। अपनो 'संतबानी सीरीज' के द्वारा उसने सारे उपलब्ध संत साहित्य को सर्व साधारण के हाथों में पहुँचाने का प्रयत्न किया है। कबीर, धर्मदास, नामदेव, रैदास और दाद की उपर्युक्त रचनाओं के अतिरिक्त निम्नलिखित ग्रन्थ भी इस ( सीरीज ) में निकल, चुके हैं:- 'मलूकदास की बानी', जगजीवनदास की 'शब्दावली' (२ भाग ), पलटू साहब की 'बानी' ( ४ भाग) दूलमदास को 'बानी', यारीसाहब की 'रतनावली', केशवदास की 'अमी पूंट', बुल्जासाहब की ‘शब्दायली', गुलाल साहब की 'बानी' और भोखासाहब की 'शब्दावली' । । , 28-[ यारी और उनकी परम्परा की रचनाओं के एक महत्वपूर्ण संस्करण का सम्पादन उस परम्परा के वर्तमान महंत बाबा राम- बरनदाम ने ‘महत्माओं को बानी' नाम से किया है । इस पुस्तक द्वारा बावरी, बीरू, ललना+ व शाह फकीर जैसे कई ऐसे संतों के पद्य प्रकाश में आ गये हैं जो अभी तक अज्ञात थे और केशव- दास, बुल्ला, गुलाल और भीखा की कुछ ऐसी रचनाएँ भी प्रकाशित हो गई हैं जिनका अभी तक पता नहीं था। ] +-वास्तव में 'ललना' नामक किसी भी सन्त का पता नहीं। 'महा. त्मानों की वाणी' में प्रकाशित पृ० ६५-६७ वाले पद्म के रचयिता
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