परिशिष्ट ३ ४११ - बषना कहते हैं कि "वास्तव में इस प्रकार के स्वामी तथा उनके भक्तों में कोई मौलिक अंतर नहीं है । और जो कुछ है वह केवल श्रेणी मात्र का है । दोनों को जन्म-सम्बन्धी संकट सहने पड़े थे इसलिए एक जहाँ शक्तिशाली हार्थी को भाँति है तो दूसरा छोटी चींटी सा है ।"= गुलाल ने कहा है कि "अवतारों को भी, अन्य लोगों की ही भाँति, मुक्ति के लिए ईश्वर की भक्ति करनी पड़ती है।" गुलाल शिप्य भीखा ने इसके विपरीत, अवतारों के प्रति एक संतुलित भावना बना रखी उनका कथन है कि "राम कृष्णादि अवतारों का मर्म किसने जान पाया है। ब्रह्म केवल एकमात्र है; किंतु भक्ति के लिए अनेक देव अस्तित्व में आ गये हैं।" पृष्ठ १७३ पंक्ति ८ । मूर्तिपूजा- गुजाल ने यह भी कहा है कि ."जो लोग पत्थर पूजते हैं और तीर्थों में श्रद्धा रखते हैं वे उनके समान हैं जो धूल को तौलते हुए उसे श्राटा बतलाया करते हैं।"* "क्या मारे मरे न सिद्ध सरीर । कृष्ण कालब सि एकहि तीर । वही, साखी ४४ ॥ ---ठाकुर चाकर की कितम काया । जोनी संकट दोन्यो भाया ।। एक कुंजर एक कोड़ी कोना । एक हि भक्ति घारी दीना ॥ नासो बढ़ा नासो बाला । वपना का ठाकुर राम निराला ।। वही, ४२, ८ । V--सुर, नर, नाग, मानुष प्रौतार । बिनु हरि भजन न पावै पार।। म० वा०, पृ० २८।। 1--राम-कृष्ण अवतार को बिरला पाव भेव । भीखा केवल एक ब्रह्म हैं, भेद उपासन देव ॥ वही, पृ० ८८।
- -पूजहि पत्थर जल को थान । जोखत धूरि कहत है पिसान ।।
म० वा० (२८६ )।