पृष्ठ:हिन्दी काव्य में निर्गुण संप्रदाय.djvu/४९२

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४१० हिन्दी काव्य में निर्गुण संप्रदाय पृष्ठ १५६ पंक्ति ३ । गुलाल ने इस बात को बड़ी दृढ़ता के साथ कहा है कि निर्गुणमत वेदांत के अध्यात्म के सिवाय कुछ भी नहीं है । पृष्ठ १६५ पंक्ति है। राम-गुलाल के अनुसार कबीर का मत राममत है । कबीर ने स्वयं उपदेश दिया है कि 'ररा' का टोप एवं 'ममा' का कवच पहनो और ये दो अक्षर 'राम' शब्द के अंग हैं।* फिर भी कबीर इस बात की घोषणा करते समय कभी नहीं थकते कि लोग 'राम' शब्द का अर्थ नहीं जानते। उन्हीं की भाँति अन्य अनेक संत भी अवतारों को उनके सम्मानित पदों से च्युत करने के सम्बन्ध में दृढ़ हैं। रजबदास कहते हैं कि “परशुराम एवं रामचन्द्र दोनों सम- कालीन थे और आपस में द्वष भी रखते थे फिर किसे ईश्वर माना जाय "X "दत्तात्रेय, गोरख हनुमान व प्रहलाद में से किसी ने भी शास्त्रों का अध्ययन नहीं किया था और न शिक्षा पायी थी और फिर भो श्रमर हो गये, किन्तु कृष्ण का प्राण एक ही तीर में चला गया था।" +--कबिरा राम मता सो लही। हिंदू तुरक सबन की कही ।। 'महात्माओं की वाणी' ( अ० ४)। --ररा करि टोप ममा कर बख्तर । 'क० ग्रं०', (२०६-२६० )।

--है कोइ राम नाम बतावै । बस्तु अगोचर मोहि लखावै ।।

रामनाम सब कोई बखाने । रामनाम का मरम न जाने।। कहै कबीर कछु कहत न आवै । परचै बिना मरम को पावै ॥ वही, ( १६२-२१८ ) X-परसुराम औ रामचन्द भये सु एक हि बार । तौ रज्जब द्वै द्वैयिकरि को कहिए अवतार ।। 'सर्वांगी' ( साखी, ४२-२६ )

-दत्त गोरख हगवंत प्रहलाद'। सास्त्रो पढ़िए न सुरिगए साध ।।

( बाद ।