पृष्ठ:हिन्दी काव्य में निर्गुण संप्रदाय.djvu/४९७

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और ५०० परिशिष्ट ३. “मिस्र देशीय काल्पनिक पक्षो 'फ्रोनिक्स' का थोड़ा बहुत रूपांतर जान पड़ता है जिसके संबंध में भिन्न भिन्न लेखकों ने भिन्न भिन्न कथाएँ कह डाली हैं । सब से प्रसिद्ध कथा यह है कि यह पक्षी एक समय में एक ही रहा करता वर्षों तक अरब के रेगिस्तान में जीवित रह कर अंत में अपने को उन सुगंधित टहनियों के ढेर पर जला देता है जो सूर्य की किरणों द्वारा आप से आप जल उठती हैं और जिनको ज्वाला इसके पंखों की धौंक से तीव्र हो जाती है। इसकी भस्म से इसका एक बच्चा निकल पड़ता है जो पूरे आकार का फीनिक्स बन कर शीघ्र तैयार हो जाता है। यह पक्षी हिन्दी में फारसी से पाया जान पड़ता है जहाँ इसे 'श्रातिशजन' कहा करते हैं और जहाँ पर इसका ग्रीक नाम 'कुकनूस' है। फारसी में इसको कथा कुछ भिन्न है। वहाँ इस पक्षी को चांच में अनेक छिद्र बतलाये जाते हैं जिनसे सुरीला शब्द निकजा करता है। इन छिद्रों से निकलनेवाले श्वासों से ही, ढेर पर बठकर पक्षी के गाते समय लकड़ियाँ जल उठती हैं। राख के ढेर से एक अंडा उत्पन्न होता है जिससे पक्षी का जन्म होता है। हिंदी में यह सारी कथा बदल गई है और पक्षो के लिए पृथ्वी का स्पर्श करना कभी नहीं बतलाया जाता । उसका अंडा भी आकाश में ही उत्पन्न होता है और दिये जाने के अनन्तर पृथ्वी पर आने से पहले ही फूट जाता है. तथा वरचा उड़कर फिर अपनी के निकट चला जाता है जो ऊपर विहरती रहती है। इस पक्षी का संबंध यहाँ, उपर्युक्त भस्म हो जाने की क्रिया के साथ अब कुछ भी नहीं रह गया है। फिर भी इसका 'अनल' (अनल) पच्छ अथवा अग्निपक्षी नाम यह सूचित करता है कि इसका संबंध फारसी के श्रातिशजन तथा ग्रीक भाषा के उस फ्रोनिक्स . पालो तव नाम कुल्ल करतार, बांध कर चढ़ो सुरत का तार । मीन मत चढ़कर उलटी धार, मकरगत पकड़ा अपनातार ।। सार वचन, भा० १, पृ० २१३ ।