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पृष्ठ:हिन्दी काव्य में निर्गुण संप्रदाय.djvu/५१५

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afie Forget ४- तर भरोसे मगहर बसियो, मेरे तन की तपनि बुझाई। पहले दरसन मगहर पायो, पुनि कासी बसे आई ॥ वही, पृ० २६६, पद १०, 'ग्रन्थ' पृ० ५.२३ । ५--हंस उबारन सतगुरु जग में प्राइया । कासी में परगट भये दास कहाइया॥ बाँभन व संन्यासी तो हाँसी की न्यिा । कासी से मगहर आये कोई नहिं ची न्हिया ।। मगहर गाँव गोरखपुर जग में प्राइया । हिंदू तुरक प्रबोधि क पंथ चलाइया । धर्मदास 'शब्दावली' पृ० ४ । -कासी हांसी करबत डोलै, सँग गनिका मतवाली। ग्रंथ शब्दावली (ह० लि०) ऊपर का ५ भी देखिये । --हिरदै कठोर मरथा बनारसी नरक न बंच्या जाई । हरि का दास मरै मगहर सेन्या सकल तिराई ॥ क० ग्रं०, (२२४-३४५ )। जो कासी तन तजै कबीरा, रामहि कौन निहोरा । वही, ( २३१-४०२ )। चरन विरद कासी हि न देहूँ। कहै कबीर भल नरक जैहूँ। वही, ( १८५-२६० )। जिउ जल छोडि बाहरि भई मीना'.. तजिले बनारस मति भइ भारी॥ मुमा रमत श्रीराम- --ग्रंथ, पृ० १७६, पद १५ । ८-~-घट घट अबिनासी अहै सुनहु तकी तुम सेख । बीजक ( रमैनी ६३ )। ..