पृष्ठ:हिन्दी काव्य में निर्गुण संप्रदाय.djvu/५१८

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हिन्दी काव्य में निर्गुण संप्रदाय पृ० ६२। कुछ अन्य सन्त- इस पुस्तक में जिन सन्तों के जीवन परिचय दिये गये हैं, उनके अतिरिक्त कुछ और हैं जो कबीर-द्वारा प्रभा- वित जान पड़ते हैं और जिनकी चर्चा करना आवश्यक है r १-मीराबाई-यद्यपि मीराबाई व्यवहारतः सगुणोपासिका थीं और कृष्ण की उपासना रणछोड़ के रूप में किया करती थीं, फिर, भो यह सच है कि उनके कहे जानेवाले पदों में निर्गुण विचारधारा स्पष्ट दीखती है । उन्होंने अपनी प्रेम सम्बन्धो विनय कृष्ण एवं ब्रह्म दोनों के प्रति एक साथ को है । और ब्रह्म को उन्होंने अपने भीतर निवास मेरी बहुरिया को धनियाँ नाउँ। ले राख्यो रमज निया नोउ ।। इन मुंडियन मेरा घर धुंधरावा। बिटुवहिं रामरमौवा लावा॥ कहैं कबीरसुनहु मेरी माई । इन मुंडियन मेरी जाति गॅवाई ।। --ग्रन्थ पृ० ६२ । बूडया वंश कबीर का उपज्या पूत कमाल । हरिका सिमरन छाड़ के घर ले आया माल ।


क० ग्रं० (२६३-१८५) ।

चले कमाल तब सीस नवाई। अहमदाबाद तक पहुँचे पाई ।। -बोधसागर ( कबीरसागर ) पृ० १५१५ । गंग जमन के अंतरे निरमल जल पाणी । कबीर को पूत कमाल है, जिन इह गति जाणी ॥ -'कमाल-बानी'। -मात-पिता तुमको दियो, तुमही भल जानों हो । तुम तजि और भतार को मन मे नहिं पानों हो ॥ तुम' प्रभु पूरन ब्रह्म पूरन पद दीजै हो । -बानी (वे० प्रे० ) पृ० ८ पद १२ ।