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पृष्ठ:हिन्दी काव्य में निर्गुण संप्रदाय.djvu/६७

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{ ४० ) साम्प्रदायिक ग्रन्थों की हस्तलिखित प्रतियों का प्रदर्शन भी किया गया है । इसके सिवाय मूल ग्रन्थों का प्रकाशन पहले बम्बई, लाहौर, लख. नऊ, काशी, प्रयाग आदि के कुछ प्रमुख यंत्रालयों-द्वारा ही हुआ करता था जिनमें से कई एक अब इस ओर वैसी रुचि दिखलाते हुए नहीं जान पड़ते और न अपने पिछल प्रकाशनों के ही नवीन संस्करए निकाल रहे हैं । परन्तु इस कार्य का भार अब स्वयं कई सांप्रदायिक संस्थाओं ने ही अपने ऊपर ले लिया है और वे, मूलग्रन्थ, फुटकर पद संग्रह, जीवनी आदि को निरन्तर प्रकाशित करती जा रही हैं। ऐसी संस्थाओं में से कुछ का ध्यान पत्र-पत्रिकाओं के निकालने तथा शिक्षालयों के खोलने की ओर भी आकृष्ट हुआ दीख पड़ता है। संत साहित्य के विविध रूपों में उक्त प्रकार से प्रकाशित होते रहने तथा इस विषय के साथ बहुधा सन्मर्क में आते रहने से इसके प्रति हमारी रुचि में कुछ न कुछ अभिवृद्धि का होना भी स्वभाविक है । फलतः कई स्वतन्त्र विद्वानों, विद्यालयों तथा यूनिवर्सिटियों एवं शोध- संस्थाओं ने भी इसके अध्ययन को अपना विषय बनाना प्रारम्भ किया है। भिन्न-भिन्न संतों, उनके सम्प्रदायों, ग्रंथों तथा सिद्धांतों के सम्बन्ध में इधर कई एक अच्छे-अच्छे निबन्ध लिखे गये हैं और कुछ पुस्तके भी प्रकाशित हुई हैं। उदाहरण के लिए डॉ० मोहनसिंह ने अपनी पुस्तक कबीर-हिज बायोग्राफी ( Kabir-His Biography ) स० १६६७ में प्रकाशित की और डबल्यू० एल० एलिसन ने अपनी पुस्तक 'दि साध्स' ( The Sadhs ) सं० १९९२ में निकाली। इसी प्रकार आचार्य क्षितिमोहन सेन ने अपनी एक रचना 'दादू' नाम से सं० १९६३ में बैंगला भाषा में लिखकर छपायी । हिंदी में इन सबसे पहले डा. रामकुमार वर्मा ने एक पुस्तक 'कबीर का रहस्यवाद' नाम से सं० १९८८ में प्रकाशित की थी और फिर कई वर्षों के अनन्तर उन्होंने, 'संत कबीर' नाम की एक अन्य पुस्तक-द्वारा, कबीर के 'प्रादि. -