पृष्ठ:हिन्दी काव्य में निर्गुण संप्रदाय.djvu/७

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वक्तव्य ईश्वर को अनेक धन्यवाद है कि आज हम स्वर्गीय डा० बड़थ्वाल की प्रधान एवं ख्यातनामा अंग्रेजी कृति 'दि निर्गुण स्कूल आफ हिंदी पोएट्री' (The Nirgun School of Hindi Poetry) का 'हिंदी रूपान्तर प्रकाशित करने में समर्थ हो सके हैं। मूल पुस्तक डाक्टरेट की उपाधि के निमित्त थीसिस के रूप में लिखी गई थी जिसकी उसके परीक्षकों ने मुक्तकंठ से प्रशंसा की थी। स्वयं डा० बड़थ्वाल अपनी इस प्रिय कृति को हिंदी में अत्यन्त, मौलिक रूप में निकालना चाहते थे जिसमें विषय से सम्बंधित पीछे के शोधों-द्वारा उपलब्ध समस्त तथ्यों का भी समावेश रहता । इसी कारण उन्होंने मूल पुस्तक के केवल पहले, दूसरे और छठे अध्यायों का ही अनुवाद करके आगे के अनुवाद-कार्य को अनुकूल एवं उपयुक्त समय तक के लिए स्थगित कर दिया था। उक्त तोन अध्यायों का अनुवाद "हिंदी काव्य में निर्गुण संप्रदाय" नाम से हुआ था और वह अंत के थोड़े से अंश को छोड़कर उस समय तुरन्त ही 'नागरी प्रचारिणी पत्रिका' के पंद्रहवें भाग में छपा था । इस छपे अंश से ही पता चल जाता है कि अनुवाद को मौलिक बनाने में किस प्रकार संशोधन और परिवर्द्धन का कार्य हो रहा था। अस्तु । मूल पुस्तक के साथ-साथ इस अनुवाद की भी बड़ी ख्याति हुई और हिंदी प्रेमियों की ओर से पुस्तक के हिंदी संस्करण की भी मांग होने लगी। डा० बड़थ्वाल इस मांग की पूर्ति की ओर सचेष्ट तो बहुतथे पर अन्य कार्यों ने उनको इस प्रकार व्यस्त रखा कि वे. उत्कट इच्छा रखते हुए भी जीवन पर्यंत इसको आगे नहीं बढ़ा .