पृष्ठ:हिन्दी काव्य में निर्गुण संप्रदाय.djvu/८

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सके। इस प्रकार होनहार के आगे कुछ न चल सकी और मौलिक अनुबाद की बात सदैव के लिए जाती रही। प्रस्तुत हिंदी संस्करए का नामकरण और उसके प्रथम तीन अध्यायों ( मूल पुस्तक के प्रथम, द्वितीय और षष्ठ अध्यायों ) का अनुवाद जैसा कि पूर्वोक्त विवरए से स्पष्ट है डा० बड़थ्वाल का दिया हुआ है । शेष का अनुवाद और सम्पादन विद्वद्वय पंडित परशुराम जी चतुर्वेदी (बलिया) और डा० भगीरथ मिश्र (लखनऊ विश्वविद्यालय) ने किया है। श्री चतुर्वेदी जी प्रस्तुत विषय के प्रेमी तो हैं ही, साथ ही साथ इस विषय का उनका गंभीर अध्ययन है । भीरा के पदों के सम्पादन- द्वारा और हिंदुस्तानो आदि पत्रिकाओं में निकले संत-साहित्य विषयक उनके निबन्धों से उनका नाम सर्वविदित है। प्रस्तुत संस्करण में शेष अनुवाद और भूमिका-लेखन उन्हीं का है । डा० मिश्र लखनऊ विश्व- विद्यालय के हिंदी विभाग में प्राध्यापक हैं और सुकवि होने के अति- रिक्त "हिंदी काव्यशास्त्र का इतिहास" नामक साहित्यशास्त्र-संबंधी अपनी सुंदर एवं प्रधान रचना-द्वारा विशेष ख्याति प्राप्त कर चुके हैं। वे डा० बड़थ्वाल के पटु शिष्यों में से हैं और उनकी भाव, भाषा और शैली से अच्छी तरह परिचित हैं। इन्हीं दृष्टियों से उन्होंने संपादन- कार्य किया है । नवीन अनुवाद को सुव्यवस्थित रूप में सजाकर और उसमें उचित संशोधन तथा परिवर्द्धन करके उसको डा० बड़थ्वाल के अनुवाद के अनुरूप बनाने का उन्होंने प्रयत्न किया है । सम्पादन का विशेष अभिप्राय भी यही था। क्योंकि एक तो अनुवाद दो तरह के हो गये थे जिनमें भाव, भाषा और शैली की दृष्टि से सामंजस्य स्थापित करना आवश्यक था दूसरे नवीन अनुवाद में मूल के भावों की रक्षा करना भी था। संपादन कार्य एक कला है जिसका काम यही है । अतः सौभाग्य से इस कार्य में डा० मिश्र की सहा- यता हमें प्राप्त हो गई। कहने का तात्पर्य यह है कि डाक्टर