( ४ ) उतना नहीं दे पाया जिसका कारण मेरी व्यक्तिगत परिस्थितियाँ रही हैं । इसके लिए मैं विज्ञ पाठकों का क्षमाप्रार्थी हूँ। इस दिशा में हिन्दी में पाया हुप्रा डा० बड़थ्वाल का यह ग्रंथ आज भी अभी तक निकले हिन्दी के ग्रंथों में सबसे अधिक महत्वपूर्ण एवं प्रामाणिक है, यह कहने में मुझे कुछ भी संकोच नहीं। "हिन्दी काव्य में निर्गुण संप्रदाय” नामक ग्रंथ में जिस दृष्टिकोण का प्रकाशन हुआ है वह संतसाहित्य के अध्ययन के लिए आवश्यक है और सबसे बड़ी विशेषता इसमें यह है कि संतों की पंक्तियों में विचार-सम्बन्धी जो एक विश्रृङ्खलता दीखती है वह इत्त पुस्तक का आधार ग्रहण कर चलने से नहीं रह जाती। इस साहित्य का एक निश्चित अर्थ, निश्चित उद्देश्य एवं निश्चित प्रभाव प्राप्त करने के लिए इस पुस्तक का अध्ययन बड़ा ही उपयोगी है । डा० बड़थ्वाल जी से कुछ सीखने का सौभाग्य मुझे भी प्राप्त हुआ था और उन्हीं के निर्देशन में मैंने निरंजनी कवि संत तुरसी- दास पर एक पुस्तक भो लिखी थी। इसके आधार पर मैं यह कहने का साहस कर सकता हूँ कि संतों की अटपटी वाएी को सुलझा कर ग्रहण करने का मार्ग, प्रशस्त करने का बहुत बड़ा श्रेय उनको प्राप्त है। डा० बड़थ्वाल ने अपने जीवनकाल में हिन्दी संसार को बहुमूल्य रचनाएँ भेंट की थीं। उनके अनेक निबन्ध, जो विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में निकले थे तथा उनकी अनेक पुस्तकों की संपादकीय भूमिकाएँ और टिप्पणियाँ, उनके द्वारा प्रस्तुत हिन्दी साहित्य के गंभीर अध्ययन एवं विवेचन को प्रकट करती हैं। उन सभी का स्थायी पुस्तकाकार रूप में आना परम आवश्यकीय है। डा० बड़थ्वाल परम विद्यानुरागी एवं गंभीर साहित्यिक साधक थे । हिन्दी साहित्य की सेवा उनके लिए एक पुण्य व्रत था। अपने समग्र जीवन-काल में वे उसके प्रति बड़ी निष्ठा के साथ दत्तचित्त रहे और उसके लिए एक तपस्वी का जीवन व्यतीत किया । उन्होंने साहित्य की आलोचना के विभिन्न अंगों की पूर्ति के लिए
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