पृष्ठ:हिन्दी काव्य में निर्गुण संप्रदाय.djvu/८४

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२ हिन्दी काव्य में निर्गुण संप्रदाय उपदेशों के लिए जनभाषा हिंदी को ही अपनाया था। इसलिये उसका प्रतिरूप हिंदी के काव्य-साहित्य में सुरक्षित है। सामाजिक, धार्मिक' राजनीतिक आदि अनेक कारणों ने मिलकर इस आंदोलन को रूप की वह नवीनता और भाव की वह गहनता प्रदान की जो इसकी विशेषता है। मुसलमानों को भारत-विजय के बाद भारत की राजनीतिक अवस्था ने, जिसमें दो अत्यंत विरोधी संस्कृतियों का व्यापक संघर्ष प्रारंभ हुआ, इस आंदोलन के प्रसार के लिये उपयुक्त भूमिका प्रस्तुत की । संत-संप्रदाय की विचारधारा को अच्छी तरह समझने के लिये यह आवश्यक है कि हम पहले उन विशेष परिस्थितियों से परिचित हो जायँ, जिनमें उसका जन्म हुआ। अतएव पहले उन्हीं परिस्थितियों का उल्लेख किया जाता है। यद्यपि रान ऐलान करती है कि “धर्म में बल का प्रयोग नहीं होना चाहिए। विश्वास लाने के लिये कोई मजबूर नहीं किया जा सकता। विश्वास केवल परमात्मा की प्रेरणा से हो सकता २. मुस्लिम- है", फिर भी इस्लाम के प्रसार में तलवार ही आक्रमण का अधिक हाथ रहा है। अरबों ने, और उनके बाद इस्लाम धर्म में प्रवेश करानेवाली अन्य जातियों ने, देश-देशांतरों में विनाश का प्रकांड तांडव उपस्थित कर दिया । चीन से स्पेन तक की भूमि पर उन्होंने खुदा का कहर ढा दिया । जहाँ-जहाँ वे गए, देश वीरान, घर उजाड़ और जन-समुदाय काल के कवल हो गए । भारत की सस्य-श्यामला भूमि, विश्वविश्रुत लक्ष्मी और जनाकीर्ण देश ने बहुत शीघ्र मुसलमानों को आकृष्ट कर लिया । यहाँ उन्हें धर्म- प्रसार और राज्य-विस्तार दोनों की संभावना दिखाई दी। निरपेक्षता, तत्वज्ञान और विभव की इस भूमि की भी धर्मांध-विश्वासियों के लोभ- सेल, "अल कुरान", पृ. ५०३ ।