पृष्ठ:हिन्दी काव्य में निर्गुण संप्रदाय.djvu/८७

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पहला अध्याय ५ हिंदुओं से वसूल किए जानेवाले कर कम न थे। अलाउद्दीन के राजत्वकाल में उन्हें अपने पसीने की कमाई का आधा राज-कोष में दे देना पड़ता था। ऐसी स्थिति में उनके पास इतना भी न बच रहता था कि वे किसी तरह अपने कष्टमय जीवन के दिन काट सकते । बरणी के अनुसार, हिंदुओं में से जो धनाढ्य समझे जाते थे, वे भी घोड़े पर सवारी न कर सकते थे, हथियार न रख सकते थे, सुन्दर वस्त्र न पहन सकते थे, यहाँ तक कि पान भी न खा सकते थे। उनकी पत्नियों को भी मुसलमानों के यहाँ मजदूरी करनी पड़ती थी। हिंदुओं के लिए धार्मिक स्वतंत्रता का तो प्रश्न ही नहीं उठ सकता था। उनके धर्म के लिए प्रत्यक्ष रूप से घृणा प्रदर्शित की जाती थी। देवालयों को गिराना, देवमूर्तियों को तोड़ना और उनको अनुचित स्थानों में चुनवाना प्रायः प्रत्येक मुस्लिम विजेता और शासक के लिये शौक का काम होता था। फ़ीरोज़शाह ने (रा०-१३५७, मृ०-१३८८) इस लिये एक ब्राह्मण को जीता जला दिया था कि उसने खुले आम हिंदू विधि के अनुसार पूजा की थी । फिरिश्ता ने कैथन के रहनेवाले बुड्ढन नाम के एक ब्राह्मण का उल्लेख किया है जिसकी सिकंदर लोदी के सामने इसलिए हत्या कर डाली गई थी कि उसने जन-समुदाय में इस बात की घोषणा की थी कि हिन्दू धर्म भी उतना ही महान् है जितना पैगंबर मुहम्मद का धर्म । कहते हैं कि यह दंड उसे उलमानों की एक समिति के निर्णय के अनुसार मिला था। उलमानों ने उसे मृत्यु इन दोनों में से एक को चुनने को कहा था। बुड्ढन ने आत्मा के हनन और इस्लाम . 8 “तारीखे फ़ीरोज़शाही", पृ० २८८; ई० प्र०—'मेडीवल इंडिया", पृष्ठ १८२-८३; "बिब्लोथिका इंडिका", ४७५ । ४ स्निथ "स्टूडेंट्स हिस्ट्री अाफ़ इण्डिया" पष्ठ १२६ ।