पृष्ठ:हिन्दी काव्य में निर्गुण संप्रदाय.djvu/९९

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पहला अध्याय pus • लगभग दो शताब्दी के बाद वैष्णव साधु रामानन्द ने कबीर नाम : एक मुसलमान युवक को अपना चेला बनाया, जिसके भाग्य में एक बड़े भारो ऐक्य-अान्दोलन का प्रवर्तक होना लिखा था। स्वयं मुसलमानों में ऐसे लोगों का प्रभाव न था जो हिन्दू-मुस्लिम विष के अनं.चित्य को देख सकते । उनमें प्रमुख सूफी फकीर थे जिनकी विचार-धारा हिन्दुओं के अधिक मेल में थो । ६. हिंदू विचार- सूफी मत का उदय अरब में हुआ था। अरब और धारा और सूफी भारत का पारस्परिक सम्बन्ध बहुत प्राचीन है । इतना धर्म, तो पाश्चात्य विद्वान् भी मानते हैं कि अरब और भारत का व्यापार-सम्बन्ध ईसा के १०८६ वर्ष पूर्व से है । बौद्ध धर्म ने अशोक के राजत्व-काल में भारत की पश्चिमोत्तर सीमा को पार कर लिया था। महायान धर्म, जिसमें बुद्ध धर्म ने भक्तियोग, दर्शनशास्त्र को बहुत कुछ अपना लिया था, ईसा की पाँचवीं शताब्दी में पश्चिमोत्तर भारत से बाहर कदम रख चुका था। फाहियान को खूटान में उसके दर्शन हुए थे । डाक्टर स्टीन की खोजों से फाहियान का समर्थन होता है । ई० सन् ७१२ में अरबों ने सिन्ध-विजय की। अरब विजेता भारत से केवल लूट-पाट का माल ही नहीं ले गए, प्रत्युत भारतीय संस्कृति में उन्हें जो कुछ सुन्दर और कल्याणकर मिना, उससे भी उन्होंने लाभ उठाया। भारतीय संस्कृति, भारतीय विज्ञान, ॐ लंदन की रायल सोसाइटि ऑव आर्ट के भारतीय विभाग के सामने कप्तान पी० जॉन्स्टन सेंट का दिया हुआ ऐन अाउट-लाइन प्राव दि हिस्टरी आँच मेडिसिन इन इंडिया (भारतीय औषध-विज्ञान के इतिहास की रूप-रेखा) शीर्षक सर जार्ज बर्ड उड-स्मारक व्याख्यान, जिससे कुछ अवतरण हिन्दू युनिवर्सिटी मंगेजीन भाग २६, नं० ३, पृ० २३० में और उसके आगे के पृष्ठों में छपे थे।