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पृष्ठ:हिन्दी काव्य में निर्गुण संप्रदाय.djvu/९८

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१३ हिन्दी काव्य मै निर्गुण संप्रदाय पोछे उस्लेख किया जा चुका है। काजो को संबोधित करके उन्होंने कहा था कि "हे काजी ! तुम व्यर्थ मुहम्मद मुहम्मद न कहा करो। मुहम्मद को समझ सकना बहुत कठिन है, मुहम्मद के हाथ में जो छुरी थी वह लोहे अथवा इस्पात की बनी नहीं थी ।" अर्थात् वे प्रेम अथवा प्राथामिक पाकर्षण से लोगों को वश में करते थे। हिमालय में प्रचलित मंत्रों में इस बात का उल्लेख है कि महात्मा गोरखनाथ ने हिंदू मुमजमान दोनों को अपना चेजा बनाया थाx | बाबा रतन हाजी उनका मुसलमान चेना माजूम पड़ता है, जिसने मुहम्मद नामक किसी मुसलमान बादशाह को प्रबोधित करते हुए 'काफिर बोध' नामक पद्य- ग्रन्थ लिखा था, जो अाजकल कहीं गोरखनाथ और कहीं कबीर का माना जाता है । 'काफिर-बोध' में यह दिखलाने का प्रयत्न किया गया है कि हिंदू और मुसलमान में भेद-भाव नहीं रखना चाहिए, क्योंकि जिस बिंदु से हिंदू-मुसलमान पैदा होते हैं, वह न हिंदू है, न मुसलमान। हिंदू. मुसजमान दोनों एक ही परमात्मा के सेवक हैं, अतएव हम जोगी किसी से पक्षपात नहीं रखते। ॐ मुहम्मद मुहम्मद न कर काजी मुहम्मद का विषम विचारं । मुहम्मद हाथि करद जे होती लोहे गढ़ी न सारं ।। -"जोगेश्वरी साखी", ८, पौड़ी हस्तलेख । x हिंदू मुसलमान बाल गुदाई । दोऊ सहरथ लिये लगाई ।। -"रख्वाली"। + जिस पाणी से कुल पालम उतपानां । ते हिन्दू बोलिए कि मुसलमानां ॥ २० ॥ हिन्दू मुसलमान खुदाइ के बंदे । हम जोगी ना रखें किस ही के छंदे ।। ६॥ -"पौड़ी हस्तलेख", पृ० २४३ । s