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२२:हिन्दी-निरुक्त
 


के अन्त्य स्वर (अ या आ) का लोप हो जाता है और 'ई' या 'ई' अन्त में हैं, तो उन्हें 'इय्' हो जाता है। यह 'इय्' (इयङ) संस्कृत में भी है-'श्रियौ' 'श्रियः' । परन्तु हिन्दी में सरलता है.--प्रत्येक इकारान्त- ईकारान्त के अन्त्य को 'इय्'; स्त्रीलिङ्ग हो, चाहे पुल्लिङ्ग । उदाहरण लीजिए 'ओं' विकरण के--- बालक ने बालकों ने (प्रकृति के अन्त्य स्वर का लोप) लड़के ने लड़कों ने (उसी तरह लोप) परन्तु आकारान्त तत्सम (पुल्लिङ्ग या स्त्री-लिङ्ग) शब्दों में अन्त्य स्वर ज्यों का त्यों बना रहता है- पिता ने पिताओं ने माता ने माताओं ने राजा ने राजाओं ने इकारान्त-ईकारान्त अपने अन्त्य स्वर को 'इय्' करके 'विकरण' से जा मिलते हैं। भले ही वे स्त्रोलिङ्ग हों, चाहें पुल्लिङ्ग : नदी को नदियों को कवि को कवियों को लड़की को लड़कियों को अतिथि ने अतिथियों ने इत्यादि। आप कहेंगे कि 'इ-ई' को 'इय्' होता है, तो (संस्कृत के अनुकरण पर) 'उ-ॐ' को 'उ' होना चाहिए। फलतः 'बाबुओं' की जगह 'बाबुचों को' और 'गुरुओं से' तथा 'बहुओं ने' की जगह 'गुरुबों से' और 'बहुवों ने' होना चाहिए। पर ऐसा तो होता नहीं है। यह क्या बात साधारणतः इसका उत्तर यही दिया जा सकता है कि नहीं होता है; भाषा की प्रकृति ही ऐसी है; किसी का जोर तो है नहीं। परन्तु सोचने से कारण भी मालम देता है कि ऐसा है क्यों। क्यों 'इ-ई' को 'इय' होता है और 'उ-ऊ' को 'उब नहीं। सच बात तो यह है कि 'उ-ऊ' को 'उ' होता ही है। परन्तु 'उन्' के 'व्' का विकरण ('ओं') के साथ मिलने पर लोप हो जाता है । लोप का कारण स्पष्ट श्रति का