पृष्ठ:हिन्दी निरुक्त.pdf/३

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इस संस्करण की भूमिका

इस छोटी-सी पुस्तक का यह दूसरा संस्करण बहुत दिन बाद निकल रहा है। प्रथम संस्करण सन १६४६ में कलकत्ते से जनवाणी प्रकाशन ने निकाला था। इस प्रकाशन के अध्यक्ष चि० हजारीलाल शर्मा के विशेष अनुरोध पर. ही यह पन्नक लिखी गई थी और प्रकाशनार्थ दी गई थी। इसका बड़ा आदर हुआ था और महारण्डित राहुल सांकृत्यायन को आशा बंध गई थी कि अब भारतीय भापा-विज्ञान का उदय होगा। उन्होंने एक लेख भी इस संबंध में लिखकर छपवाया था। उनकी आशा के अनुरूप काम हआ। इस 'हिन्दीनिकत' के नाथ राहुल जी ने 'राष्ट्र भाषा का प्रथम व्याकरण भी बहुत पसन्द किया था और व्याकरण तथा भा पा-विज्ञान पर कुछ अधिक लिखने को प्रेरित किया। फलतः 'हिन्दी शब्दानुशासन' तथा "भारतीय भाषा विज्ञान' का लेखनप्रकाशन हुआ। यह काम इसलिए हो गया कि 'काशी नागरी प्रचारिणी सभा' ने व्याकरण लिख देने के लिए मझसे प्रार्थना की और काशी केही चौखम्भा संस्कृत सीरीज' के प्रकाशकों ने भाषा-विज्ञान लिख देने का आग्रह किया। दोनों जगह से मुझे पेशगी अच्छी रकम मिली, जो आगे चलकर रायल्टी में धीरेधीरे कट गई। हिन्दी शब्दानुशासन' तथा भारतीय भापा विज्ञान प्रकाशित हो गए। एक पीड़ी बीत गई। लोग उत्सुक थे 'राष्ट्र भाषा का प्रथम व्याकरण' तथा हिन्दी-निरुक्त' देखने के लिए । परन्तु इनका पुनः प्रकाशन नहो सका। इन दोनों पुस्तकों के प्रकाशक 'जनवाणी प्रकाशन ने यह काम बन्द कर दिया। मैंने किसी अन्य प्रकाशक से कोई बात न की। लक्ष्मी जी (प्रकाशक) को सरस्वती (लेखक) की सेवा में आना चाहिये; सरस्वती का लक्ष्मी जी के दरदार में हाजिरी देना ठीक नहीं। यदि लेखकजन प्रकाशक का द्वार खटखटाएंगे, तो उनकी इच्छा का अनुवर्तन करेंगे, तो लोक का अनिष्ट होगा। जहाँ सरस्वती का सम्मान गिरा कि अन्धकार फैला ! यही वात मन में थी कि कभी किसी प्रकाशक से