पृष्ठ:हिन्दी निरुक्त.pdf/५

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प्रथम संस्करण की भमिका

निरुक्त या निर्वचन-शास्त्र उस विचर का मुल है. जो आज-कट माया- विज्ञान' के नाम से प्रसिद्ध है। इस विद्या का उन्मेप, संसार में सर्वप्रथम. इनी देश में भारतवर्ष में हुआः पाणिनि से भी पहल : सहस्रों वर्ष पूर्व महर्षि याक ने जो निल्लन लिखा, उनमें उन्होंने अपने से पूर्व के कितने ही सुप्रसिद्ध निस्तकारों के नामों का तथा उसके मनों का उल्लेख किया है ! इसी में इस देश में निरुक्त-आन्त्र की प्राचीनता का अनुमान कर सकते हैं। उन निम्ता- चाटयों ने निर्वचन की जो वदति तथा विभाग कल्पना निर्धारित कर दी थी आज का भाया-विज्ञान उसी पर चक्कर काट रहा है। फिर भी इस देश के अनेक आधुनिक 'आचार्य' लोगों ने यह लिख दिया कि भाया-विमान का उदय सर्वप्रथम यूनोप में हुआ ! यही बात आलोचनात्मक माहित्य के लिये भी कही और लिखी गयी थी, पर जब मैंने, अब से दस-पन्द्रह वर्ष पहले "माधरी' में 'आलोचना का जन्म और विकास' शीर्षक लेख छपाकर उस भ्रान्त धारणा का निराकरण किया, तब लोगों ने बैसा लिखना बन्द किया ! सारांश बह कि अपनी चीज न जानकर लोग इधर-उधर भटकते फिरते हैं। इस पुस्तक में प्राचीन निरुका-पद्धति का अवलम्बन करके हिन्दी-निर्वचन- शास्त्र की झलक दी गयी है। आशा है इससे इस विषय की आरम्भिक शिक्षा छात्रों को सुगमता से प्राप्त हो जाएगी। इसका निर्णय तो पाठक ही करेंगे कि इस प्रयास में लेखक को कहाँ तक सफल ना मिली है। -किशोरीदास वाजपेयी कनखल ज्येष्ठ शु. ५, २००६ दि.