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पृष्ठ:हिन्दी भाषा की उत्पत्ति.djvu/११

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द्वार से आई हैं या वहाँ उत्पन्न हुई हैं। नहीं, ठेठ गङ्गोतरी तक जाना होगा, और वहाँ से गङ्गा की उत्पत्ति का वर्णन करके क्रम-क्रम से हरद्वार, कानपुर, प्रयाग, काशी, पटना होते हुए बंगाले के आखात में पहुँचना होगा। इसी से हिन्दी की उत्पत्ति लिखने में आदिम आर्यों की पुरानी से पुरानी भाषाओं का उल्लेख करके उनके क्रमविकास का हाल लिखना पड़ा है। ऐसा करने में पुरानी संस्कृत, वैदिक संस्कृत, परिमार्जित संस्कृत, प्राकृत और अपभ्रंश भाषाओं का संक्षिप्त वर्णन देना पड़ा है। प्रसङ्ग-वश मराठी, गुजराती, बंगला, आसामी, पहाड़ी, पंजाबी आदि भाषाओं का भी उल्लेख करना पड़ा है और यह भी लिखना पड़ा है कि इन भाषाओं और उपभाषाओं के बोलनेवालों की संख्या भारत में कितनी है।

इस पुस्तक के लिखने में हमने १९०१ ईस्वी की मर्दुमशुमारी की रिपोर्टों से, भारत की भाषाओं की जाँच की रिपोर्टों से, नये "इम्पीरियल गजे़टियर्स" से, और दो एक और किताबों से मदद ली है। पर इसके लिए हम डाक्टर ग्रियर्सन के सबसे अधिक ऋणी हैं। इस देश की भाषाओं की जाँच का काम जो गवर्नमेंट ने आपको सौंपा था वह बहुत कुछ हो चुका है। इस जाँच से कितनी ही नई-नई बातें मालूम हुई हैं। उनमें से मुख्य-मुख्य बातों का समावेश हमने इस निबन्ध में कर दिया है।

अब तक बहुत लोगों का ख़याल था कि हिन्दी की जननी संस्कृत है। यह ठीक नहीं। हिन्दी की उत्पत्ति अपभ्रंश भाषाओं से है और अपभ्रंश भाषाओं की उत्पत्ति प्राकृत से है।