प्राकृत अपने पहले की पुरानी बोलचाल की संस्कृत से निकली है और परिमार्जित संस्कृत भी (जिसे हम आजकल केवल "संस्कृत" कहते हैं) किसी पुरानी बोलचाल की संस्कृत से निकली है। आज तक की जाँच से यही सिद्ध हुआ है कि वर्तमान हिन्दी की उत्पत्ति ठेठ संस्कृत से नहीं।
एक नई बात और जो मालूम हुई है वह यह है कि जो हिन्दी बिहार में बोली जाती है उसका जन्म-सम्बन्ध बँगला से अधिक है, हम लोगों की हिन्दी से कम। बँगला और उड़िया भाषाओं की तरह बिहारी हिन्दी का निकट सम्बन्ध मागध अपभ्रंश से है, पर हमारी पूर्वी हिन्दी का अर्द्धमागध अपभ्रंश से। बिहारी हिन्दी से पश्चिमी हिन्दी का सम्बन्ध तो और भी दूर का है।
जिसे हम लोग उर्दू कहते हैं वह बागोबहार की भूमिका के आधार पर देहली के बाज़ार में उत्पन्न हुई भाषा बतलाई जाती है। पर डाक्टर ग्रियर्सन ने भाषाओं की जाँच से यह निश्चय किया है कि वह पहले भी विद्यमान थी और उसकी सन्तति मेरठ के आसपास अब तक विद्यमान है। देहली के बाज़ार में मुसल्मानों के सम्पर्क से अरबी, फ़ारसी और कुछ तुर्की के शब्दमात्र उसमें आ मिले। बस इतना ही परिवर्तन उस समय उसमें हुआ। तब से मुसल्मान लोग जहाँ-जहाँ इस देश में गये उसी विदेशी-शब्द-मिश्रित भाषा को साथ लेते गये। उन्हीं के संयोग से हिन्दुओं ने भी उसके प्रचार को बढ़ाया। किंबहुना यह कहना चाहिए कि हिन्दुओं ने उसके प्रचार की विशेष वृद्धि की।