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भाषाओं की जाँच से इसी तरह बहुतसी नई-नई बातें मालूम हुई हैं। यदि वे सब हिन्दी जानने वालों के लिए सुलभ कर दी जायँ तो बड़ा उपकार हो। आशा है, एक-आध हिन्दी-प्रेमी इस विषय में एक बड़ीसी पुस्तक लिखकर इस अभाव की पूर्ति कर देंगे।
जुही, कानपुर | महावीरप्रसाद द्विवेदी |
१७ जून १९०७ |