ही नई-नई बातें मालूम हुई हैं। यह काम प्रसिद्ध विद्वान डाक्टर ग्रियर्सन कर रहे हैं। १९०१ ईसवी में जो मर्दुमशुमारी हुई थी उसकी रिपोर्ट में एक अध्याय इस देश की भाषाओं के विषय में भी है। यह अध्याय इन्हीं डाक्टर ग्रियर्सन साहब का लिखा हुआ है। इसके लिखे और प्रकाशित किये जाने के बाद, भाषाओं की जाँच से सम्बन्ध रखनेवाली डाक्टर साहब ही की लिखी हुई कई किताबें निकली हैं। उनमें जो बातें हिन्दी के विषय में लिखी हैं वे डाक्टर साहब के लिखे हुए मर्दुमशुमारीवाले भाषा-विषयक प्रकरण से मिलती हैं। इससे मालूम होता है कि भाषाओं की जाँच से हिन्दी के विषय में जो बातें मालूम हुई हैं वे सब इस प्रकरण में आ गई हैं। इस निबन्ध के लिखने में डाक्टर ग्रियर्सन की इस पुस्तक से हमें बहुत सहायता मिली है। भाषाओं की जाँच से सम्बन्ध रखनेवाली सब किताबें जब निकल चुकेंगी तब डाक्टर साहब की भूमिका अलग पुस्तकाकार निकलेगी। सम्भव है उसमें कुछ नई बातें देखने को मिलें। पर तब तक ठहरने की हम विशेष ज़रूरत नहीं समझते; क्योंकि इस विषय के सिद्धान्त बड़े ही अस्थिर हैं—बड़े ही परिवर्तनशील हैं। जो सिद्धान्त आज दृढ़ समझा जाता है, कल किसी नई बात के मालूम होने पर, भ्रामक सिद्ध हो जाता है। इससे यदि वर्ष दो वर्ष ठहरने से कुछ नई बातें मालूम भी हो जायँ, तो कौन कह सकता है, आगे चलकर किसी दिन वे भी न भ्रामक सिद्ध हो जायँगी। अतएव, आगे की बातें आगे होती जायँगी। इस समय जो कुछ
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हिन्दी भाषा की उत्पत्ति।