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हिन्दी भाषा की उत्पत्ति।

 

परजिक भाषा

परजिक भाषा का दूसरा नाम पुरानी फ़ारसी है। ईसा के पाँच-छः सौ वर्ष पहले ही से इसका प्रचार फ़ारिस में हो गया था। डारियस "प्रथम" के समय के शिलालेख सब इसी भाषा में हैं। बहुत काल तक इसका प्रचार फ़ारिस में रहा। यह फारिस के सब सूबों में बोली और लिखी जाती थी। ईसा के कोई ३०० वर्ष बाद इसका रूपान्तर पहलवी भाषा में हुआ। यह भाषा ईसा के ७०० वर्ष बाद तक रही। आज-कल फारिस में जो फ़ारसी बोली जाती है, पहलवी से उसका वही सम्बन्ध है जो सम्बन्ध भारत की प्राकृत भाषाओं का यहाँ की हिन्दी, बंगला, मराठी आदि वर्त्तमान भाषाओं से है। पहलवी के बाद फ़ारिस की भाषा को वह रूप मिला जो कोई हज़ार-ग्यारह सौ वर्ष से वहाँ अब तक प्रचलित है। यह वहाँ की वर्त्तमान फ़ारसी है। मुसल्मानी राज्य में इस भाषा का प्रचार हिन्दुस्तान में भी बहुत समय तक रहा। हिन्दू और मुसल्मान दोनों इसे सीखते थे और बहुधा बोलते भी थे। कुछ लोगों की जन्म-भाषा फ़ारसी ही थी। हिन्दुस्तान में अनेक ग्रन्थ भी इस भाषा में लिखे गये। विद्वान मुसल्मानों में अब भी फ़ारसी का बड़ा आदर है। पर रंगून, देहली, लखनऊ आदि में पुराने शाही खानदान के जो मुसल्मान बाकी हैं वही कभी-कभी फ़ारसी बोलते हैं। या अफ़ग़ानिस्तान और फारिस से आकर जो लोग यहाँ बस गये हैं, अथवा जो लोग इन देशों से व्यापार के लिए यहाँ आते हैं-विशेष करके घोड़ों के व्यापारी