वे फ़ारसी बोलते हैं। फ़ारसी बोली और लोगों के मुँह से अब बहुत कम सुनने में आती है। यों तो फ़ारसी जाननेवाले उसे बोल लेते हैं, पर फ़ारसी उनकी बोली नहीं। इससे वे विशुद्ध फ़ारसी नहीं बोल सकते।
मुसल्मानी राज्य में जो लोग फ़ारिस और अफ़ग़ानिस्तान आदि देशों से आकर इस देश में बस गये थे और जिनकी सन्तति अबतक यहाँ वर्त्तमान है—वर्त्तमान है क्यों, बढ़ती जाती है—उनके पूर्वज ईरानियों के वंशज थे। अर्थात् वे लोग जो भाषा बोलते थे वह पुरानी ईरानी भाषा से उत्पन्न हुई थी। आर्य्यों ने अपनी जिस शाखा का साथ बदख़्शाँ के आस-पास कहीं छोड़ा था, उसी शाखा के वंशधर, सैकड़ों वर्ष बाद, हिन्दुस्तान में आकर फिर आर्य्यों के वंशजों के साथ रहने लगे। इस तरह का संयोग एक बार और भी बहुत पहले हो चुका था। डाक्टर ग्रियर्सन लिखते हैं कि सिकन्दर के समय में, और उसके बाद भी, सूर्य्योंपासक पुराने ईरानियों के वंशज, धर्म्मोंपदेश करने के लिए, इस देश में आये थे। इनमें से बहुत से शक (सीथियन। Scythians) लोग भी थे। इस बात को हुए कोई दो हज़ार वर्ष हुए। ये लोग इस देश में आकर धीरे-धीरे यहाँ के ब्राह्मणों में मिल गये और अब तक शाकद्वीपीय ब्राह्मण कहलाते हैं।
जब मुसल्मानों की प्रभुता फ़ारिस में बढ़ी, और वहाँ के अग्निपूजक ईरानियों पर अत्याचार होने लगे तब जरथुस्त्र के उपासक कुछ लोग इस देश में भग आये और हिन्दुस्तान के