आर्य्यों का वंशज होगा जिनके वंशज इस समय गिलगिट और
चित्राल में रहते हैं। और जो असंस्कृत आर्य्य-भाषायें बोलते
हैं। सम्भव है ये सब आर्य्य आक्सस अर्थात् अमू नदी के
किनारे-किनारे साथ ही रवाना हुए हों। उनका अगला भाग
पंजाब पहुँच गया हो और पिछला गिलगिट और चित्राल ही में
रह गया हो। जब ये लोग पंजाब पहुँचे तब पंजाब को इन्होंने
पश्चिम से आये हुए आर्य्यों से आबाद पाया। ये पूर्ववर्ती आर्य्य
जो भाषा बोलते थे वह परवर्ती आर्य्यों की भाषा से कुछ भिन्न
थी। परवर्ती आर्य्य पूर्वी पंजाब की तरफ़ बढ़े और वहाँ से
पूर्वागत आर्य्यों को हराकर आप वहाँ बस गये। पूर्वागत
आर्य्य भी उनसे कुछ दूर पर उनके आस-पास बने रहे। पूर्वागत आर्य्यों की जो भाषायें या बोलियाँ थीं, उनके साथ नवागत
आर्य्यों की बोली को भी स्थान मिला। धीरे-धीरे सब भाषायें
गड्ड-बड्ड हो गई। कुछ समय बाद उन सबके योग से, या
उनमें से कुछ के योग से पुरानी संस्कृत की उत्पत्ति हुई।
परवर्ती आर्य्यों के फ़िरके, चाहे जहाँ से और चाहे जिस
रास्ते आये हों, धीरे-धीरे वृद्धि उनकी ज़रूर हुई। जैसे-जैसे
उनकी संख्या बढ़ती गई और वे फैलते गये वैसे ही वैसे पूर्ववर्ती
आर्य्यों को वे सब तरफ़ दूर हटाते गये। संस्कृत-साहित्य में
एक प्रान्त का नाम है "मध्य देश"। पुराने ग्रंथों में इसका बहुत
दफ़े ज़िक्र पाया है। वही आर्य्यों की विशुद्ध भूमि बतलाई
गई है। वही उनका आदि-स्थान माना गया है। उसकी