नहीं है। अतएव हिन्दी की उत्पत्ति से उनका कोई सम्बन्ध
नहीं। इसी से उनके विषय में यहाँ पर और कुछ नहीं लिखा
जाता।
ऊपर के लेखे से संस्कृतोत्पन्न आर्य्य-भाषा बोलनेवालों की संख्या २१९,७२५,५०९ आती है। पर पहले अध्याय के अन्त में लिखे अनुसार उनकी संख्या २१९,७२६,२२५ होती है। इन अङ्कों में ७१६ का फ़र्क है। ये अङ्क उन लोगों की संख्या बतलाते हैं जिन्होंने अपनी भाषा विशुद्ध संस्कृत बतलाई है। ये ७१६ जन काशी के दिग्गज पण्डित नहीं हैं; किन्तु मदरास और माईसोर प्रान्त के कुछ लोग हैं जो विशेष करके संस्कृत ही बोलते हैं। पूर्वोक्त लेखे के टोटल में इनको भी शामिल कर लेने से संस्कृतोत्पन्न आर्य्य-भाषा बोलनेवालों की संख्या पूरी २१९,७२६,२२५ हो जाती है।
मराठी और पूर्वी हिन्दी में बहुत सी बोलियाँ शामिल हैं। इन दोनों उपशाखाओं से सम्बन्ध रखनेवाली बोलियाँ तो बहुत हैं, पर भाषायें इनके सिवा और कोई नहीं। इसी तरह उत्तरी उपशाखा में जो तीन भाषायें बतलाई गई हैं वे यथार्थ मे भाषायें नहीं हैं। बहुत सी मिलती-जुलती बोलियों के समूह जुदा-जुदा तीन भागों में विभक्त कर दिये गये हैं और प्रत्येक भाग का नाम भाषा रख दिया गया है। ये बोलियाँ हिन्दुस्तान के उत्तर में मंसूरी, नैनीताल, गढ़वाल और कमायूँ आदि पहाड़ी ज़िलों में बोली जाती हैं।
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