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हिन्दी भाषा की उत्पत्ति।


पहुँच गई। उसका प्रचार बिलकुल ही बन्द हो गया। वह "मर" गई। अब क्या हो? लोग लिखना-पढ़ना जानते थे। मूर्ख थे ही नहीं। लिखने के लिए ग्रन्थों की रचना के लिए कोई भाषा चाहिए ज़रूर थी। इससे वे ही अपभ्रंश काम में आने लगी। उसी में पुस्तकें लिखी जाने लगीं। इन पुस्तकों में से कुछ अब तक उपलब्ध हैं। इनकी भाषा उस समय की कथित भाषा का नमूना है। जिस तरह की भाषा में ये पुस्तकें हैं उसी तरह की भाषा उस समय बोली जाती थी; पर किस समय वह बोली जाती थी, इसका ठीक-ठीक पता नहीं चलता। जो प्रमाण मिलते हैं उनसे सिर्फ़ इतना ही मालूम होता है कि छठे शतक मेँ अपभ्रंश भाषा में कविता होती थी। ग्यारहवें शतक के आरम्भ तक इस तरह की कविता के प्रमाण मिलते हैं। इस पिछले, अर्थात् ग्यारहवें, शतक में अपभ्रंश-भाषाओं का प्रचार प्रायः बन्द हो चुका था। वे भी मरण को प्राप्त हो चुकी थीं। तीसरे प्रकार की प्राकृत भाषाओं के लिखित नमूने बारहवें शतक के अन्त और तेरहवें के आरम्भ से मिलते हैं; और लिखी जाने के पहले इन तीसरी तरह की प्राकृत भाषाओं का रूप ज़रूर स्थिर हो गया होगा। अतएव कह सकते हैं कि हिन्दुस्तान की वर्तमान संस्कृतोत्पन्न भाषाओं का जन्म कोई १००० ईसवी के लगभग हुआ।

अपभ्रंश भाषाओं के भेद

इस देश की वर्तमान भाषाओं के विकास की खोज के लिए, हमें लिखित प्राकृतों के नहीं, किन्तु लिखित अपभ्रंश