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पृष्ठ:हिन्दी भाषा की उत्पत्ति.djvu/५२

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हिन्दी भाषा की उत्पत्ति।


भाषाओं के आधार पर विचार करना चाहिए। किसी-किसी ने परिमार्जित संस्कृत से वर्तमान भाषाओं की उत्पत्ति मानी है। यह भूल है। इस समय की बोलचाल की भाषायें न संस्कृत से निकली हैं, न प्राकृत से; किन्तु अपभ्रंश से। इसमें कोई सन्देह नहीं कि संस्कृत और प्राकृत की सहायता से वर्तमान भाषाओं से सम्बन्ध रखनेवाली अनेक बातें मालूम हो सकती हैं; पर ये भाषायें उनकी जड़ नहीं। जड़ के लिए तो अपभ्रंश भाषायें हूँढ़नी होगी।

लिखित साहित्य में सिर्फ़ एक ही अपभ्रंश भाषा का नमूना मिलता है। वह नागर अपभ्रंश है। उसका प्रचार बहुत करके पश्चिमी भारत में था। पर प्राकृत व्याकरणों में जो नियम दिये हुए हैं उनसे अन्यान्य अपभ्रंश भाषाओं के मुख्य-मुख्य लक्षण मालूम करना कठिन नहीं। यहाँ पर हम अपभ्रंश भाषाओं की सिर्फ नामावली देते हैं और यह बतलाते हैं कि कौन वर्तमान भाषा किस अपभ्रंश से निकली है।

बाहरी शाखा की अपभ्रंश भाषायें

सिन्ध नदी के अधोभाग के आसपास जो देश है उसमेँ ब्राचड़ा नाम की अपभ्रंश भाषा बोली जाती थी। वर्तमान समय की सिन्धी और लहँडा उसी से निकली हैं। लहँडा उस प्रान्त की भाषा है जिस का पुराना नाम केकय देश है। सम्भव है, केकय देशवालों की भाषा, पुराने ज़माने में, कोई और ही रही हो--अथवा उस देश में असंस्कृत आर्य्य-भाषायें बोलने-वाले कुछ लोग बस गये हों। उनके योग से इस देश की भाषा एक