विशेष प्रकार की हो गई हो। अर्थात् उसमें संस्कृत और
असंस्कृत दोनों तरह की आर्य्य-भाषाओं के शब्द मिल गये हो।
कोहिस्तानी और काश्मीरी भाषायें किस अपभ्रंश से निकली हैं, नहीं मालूम। जिस अपभ्रंश भाषा से ये निकली हैं वह ब्राचड़ा से बहुत कुछ समता रखती रही होगी।
नर्मदा के पार्वत्य प्रान्तों में, अरब समुद्र से लेकर उड़ीसा तक, उत्तर दक्षिण दोनों तरफ़ बहुत सी बोलियाँ बोली जाती रही होंगी। वैदर्भी अथवा दाक्षिणात्य नाम की अपभ्रंश भाषा से उनका बहुत कुछ सम्बन्ध रहा होगा। इस भाषा का प्रधान स्थल विदर्भ, अर्थात् वर्तमान बरार, था। संस्कृत-साहित्य में इस प्रान्त का नाम महाराष्ट्र है। वैदर्भी और उससे सम्बन्ध रखनेवाली अन्य भाषाओं और बोलियों से वर्तमान मराठी की उत्पत्ति हो सकती है। पर मराठी के उस अपभ्रंश से निकलने के अधिक प्रमाण पाये जाते हैं जो महाराष्ट्र देश में बोली जाती थी। जिस प्राकृत भाषा का नाम महाराष्ट्री है वह साहित्य की प्राकृत है। पुस्तकें उसी में लिखी जाती थीं; पर वह बोली न जाती थी। बोलने की भाषा जुदी थी।
दाक्षिणात्य-भाषा-भाषी प्रदेश के पूर्व से लेकर बंगाले की खाड़ी तक ओडरी या उत्कली अपभ्रंश प्रचलित थी। वर्तमान उड़िया भाषा उसी से निकली है।
जिन प्रान्तों में ओडरी भाषा बोली जाती थी उनके उत्तर,
अधिकतर छोटा नागपुर, बिहार और संयुक्त प्रान्तों के पूर्वी
भाग में मागधी, प्राकृत की अपभ्रंश, मागध भाषा, बोली जाती
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