हिन्दी ही पर नहीं, किन्तु हिन्दुस्तान की प्रायः सभी वर्तमान
भाषाओं पर, आज सैकड़ों वर्ष से संस्कृत का प्रभाव पड़ रहा
है। संस्कृत के अनन्त शब्द आधुनिक भाषाओं में मिल गये
हैं। परन्तु उसका प्रभाव सिर्फ वर्तमान भाषाओं के शब्द-समूह पर ही पड़ा है, व्याकरण पर नहीं। हिन्दी-व्याकरण
पर आप चाहे जितना ध्यान दीजिए, उसका चाहे जितना
विचार कीजिए, संस्कृत का प्रभाव आपको उसमें बहुत कम
ढूँढ़े मिलेगा। संस्कृत शब्दों का प्रयोग तो हिन्दी में बढ़ता
जाता है, पर संस्कृत व्याकरण के नियमों के अनुसार हिन्दी-व्याकरण में बहुत ही कम फेर-फार होते हैं। बहुत ही
कम क्यों, यदि कोई कहे कि बिलकुल नहीं होते, तो भी
अत्युक्ति न होगी। आचार-आहार, विचार, विहार, जल,
फल, कला, विद्या आदि सब तत्सम शब्द हैं। ये तद्वत् हिन्दी
में लिख दिये जाते हैं। बहुत कम फेर-फार होता है। और
हेता भी है, तो विशेष करके बहुवचन में--जैसे, आहारों,
विचारों, कलाओं, विद्याओं आदि। यदि इनमें विभक्तियाँ
लगाई जाती हैं तो संस्कृत की तरह इनका रूपान्तर नहीं
हो जाता। हिन्दी में पुरुष और वचन के अनुसार क्रियाओं
का रूप तो बदल जाता है; पर विभक्तियाँ लगने से संज्ञाओं के
रूपों में बहुत कम अदल-बदल होता है। इसी से तत्सम
शब्दों से क्रिया का काम नहीं निकलता। यदि ऐसे शब्दों को
क्रिया का रूप देना होता है तो एक तद्भव शब्द और जोड़ना
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हिन्दी भाषा की उत्पत्ति।