शब्दों के कारण एक बात लिखने लायक जो हुई है वह यह है कि मुसल्मान और फ़ारसीदाँ हिन्दु जब ऐसी हिन्दी लिखते हैं, जिसमें फ़ारसी, अरबी और तुर्की के शब्द अधिक होते हैं, तब उनके वाक्यविन्यास का क्रम साधारण हिन्दी से कुछ जुदा तरह का ज़रूर हो जाता है।
फ़ारसी, अरबी और तुर्की के सिवा पोर्चुगीज़, डच, और अँगरेज़ी भाषा के भी कुछ शब्द हिन्दी में आ मिले हैं। उनमें अँगरेज़ी शब्दों की संख्या अधिक है। इसका कारण अँगरेज़ों का अधिक सम्पर्क है। यह सम्पर्क जैसे-जैसे बढ़ता जायगा तैसे-तैसे और भी अधिक अँगरेज़ी शब्दों के आ मिलने की सम्भावना है।
यहाँ तक जो कुछ लिखा गया उससे मालूम हुआ कि हमारे आदिम आर्य्यों की भाषा पुरानी संस्कृत थी। उसके कुछ नमूने ऋग्वेद में वर्तमान हैं। उसका विकास होते-होते कई प्रकार की प्राकृतें पैदा हो गईं। हमारी विशुद्ध संस्कृत किसी पुरानी प्राकृत से ही परिमार्जित हुई है। प्राकृतों के बाद अपभ्रंश भाषाओं की उत्पत्ति हुई और उनसे वर्तमान संस्कृतोत्पन्न भाषाओं की। हमारी वर्तमान हिन्दी, अर्धमागधी और शौरसेनी अपभ्रंश से निकली है। अतएव जो लोग यह समझते हैँ कि हिन्दी की उत्पत्ति प्रत्यक्ष संस्कृत से है वे डाकृर ग्रियर्सन की सम्मति के अनुसार भूलते हैं। डाकृर साहब की राय सयुक्तिक जान पड़ती है। वे आज कई वर्षों से भाषाओं की खोज का