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हिन्दी भाषा की उत्पत्ति।

सुदूरवर्ती माइसोर, कुर्ग, मदरास, और ट्रावनकोर तक में इस हिन्दी के बोलनेवाले हैं, और लाखों हैं।

हिन्दुस्तानी

हिन्दुस्तानी के दो भेद हैं। एक तो वह जो पश्चिमी हिन्दी की शाखा है, दूसरी वह जो साहित्य में काम आती है। पहली गङ्गा-यमुना के बीच का जो देश है उसके उत्तर में, रुहेलखण्ड में, और अम्बाला ज़िला के पूर्व में, बोली जाती है। यह पश्चिमी हिन्दी की शाखा है। यही धोरे-धीरे पंजाबी में परिणत हो गई है। मेरठ के आस-पास और उसके कुछ उत्तर यह भाषा अपने विशुद्ध रूप में बोली जाती है। वहाँ उसका वही रूप है जिसके अनुसार हिन्दी (हिन्दुस्तानी) का व्याकरण बना है। रुहेलखण्ड में यह धीरे-धीरे क़न्नौज में और अम्बाले में पंजाबी में परिणत हो गई है। दूसरी वह है जिसे पढ़े-लिखे आदमी बोलते हैं और जिसमें अख़बार और किताबें लिखी जाती हैं। हिन्दुस्तानी की उत्पत्ति और उसके प्रकारादि के विषय में आज तक भाषा-शास्त्र के विद्वानों की जो राय थी वह भ्रान्त साबित हुई है। मीर अम्मन ने अपने "बाग़ोबहार" की भूमिका में हिन्दुस्तानी भाषा की उत्पत्ति के विषय में लिखा है कि वह अनेक भाषाओं के मेल से उत्पन्न हुई है। कई जातियों और कई देशों के आदमी जो देहली के बाज़ार में परस्पर मिलते-जुलते और बात-चीत करते थे वही इस भाषा के उत्पादक हैं। यह बात अब तक ठीक मानी गई थी और डाक्टर ग्रियर्सन आदि सभी विद्वानों ने इस मत को क़बूल कर लिया था। पर भाषाओं की