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पृष्ठ:हिन्दी भाषा की उत्पत्ति.djvu/७८

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हिन्दी भाषा की उत्पत्ति।

इसी को हिन्दुस्तान की प्रधान भाषा मानना चाहिए। और यदि देश भर में कभी एक भाषा होगी तो यही होगी।

"हिन्दुस्तानी" नाम यद्यपि अँगरेज़ों का दिया हुआ है तथापि है बहुत सार्थक। इससे हिन्दुस्तान भर में बोली जानेवाली भाषा का बोध होता है। यह बहुत अच्छी बात है। इस नाम के अन्तर्गत साहित्य की हिन्दी, सर्वसाधारण हिन्दी, दक्षिणी हिन्दी और उर्दू सबका समावेश हो सकता है। अत-एव हमारी समझ में इस नाम को स्वीकार कर लेना चाहिए।

उर्दू

उर्दू कोई जुदी भाषा नहीं। वह हिन्दी ही का एक भेद है; अथवा यों कहिए कि हिन्दुस्तानी की एक शाखा है। हिन्दी और उर्दू में अन्तर इतना ही है कि हिन्दी देवनागरी लिपि में लिखी जाती है और संस्कृत के शब्दों की उसमें अधिकता रहती है। उर्दू, फ़ारसी लिपि में लिखी जाती है और उसमें फ़ारसी, अरबी के शब्दों की अधिकता रहती है। "उर्दू" शब्द "उर्दू-ए-मुअल्ला" से निकला है जिसका अर्थ है "शाही फ़ौज का बाज़ार"। इसी से किसी-किसी का ख़याल था कि यह भाषा देहली के बाज़ार ही की बदौलत बनी है। पर यह ख़याल ठीक नहीं। भाषा पहले ही से विद्यमान थी और उसका विशुद्ध रूप अब भी मेरठ-प्रान्त में बोला जाता है। बात सिर्फ़ यह हुई कि मुसल्मान जब यह बोली बोलने लगे तब उन्होंने उसमें अरबी, फ़ारसी के शब्द मिलाने शुरू कर दिये, जैसे कि आज-कल संस्कृत जानने वाले हिन्दी बोलने में