प्रकाशित हुआ करती हैं। जब उर्दू और हिन्दी प्रायः एक ही भाषा है और उर्दू में अच्छी कविता होती है तब कोई कारण नहीं कि हिन्दी में न हो सके––
बात अनोखी चाहिए भाषा कोई होय।
गद्य
बोल-चाल की भाषा की कविता में उर्दू––उर्दू क्यों हिन्दुस्तानी–– यद्यपि हिन्दी से जेठी है, तथापि गद्य दोनों का साथ ही साथ उत्पन्न हुआ है। कलकत्ते के फ़ोर्ट विलियम कालेज के लिए उर्दू और हिन्दी की पुस्तकें एक ही साथ तैयार हुई थीं। लल्लू-लाल का प्रेमसागर और मीर अम्मन का बाग़ो-बहार एक ही समय की रचना है। तथापि उर्दू भाषा और फ़ारसी अक्षरों का प्रचार सरकारी कचहरियों और दफ़्तरों में हो जाने से उर्दू ने हिन्दी की अपेक्षा अधिक उन्नति की। कुछ दिनों से समय ने पलटा खाया है। वह हिन्दी की भी थोड़ी बहुत अनुकूलता करने लगा है। हिन्दी की उन्नति हो चली है। कितने ही अच्छे-अच्छे समाचार-पत्र और मासिक पुस्तकें निकल रही हैं। पुस्तकें भी अच्छी-अच्छी प्रकाशित हो रही हैं। आशा है बहुत शीघ्र उसकी दशा सुधर जाय। हिन्दी भाषा और नागरी लिपि में गुण इतने हैं कि बहुत ही थोड़े साहाय्य और उत्साह से वह अच्छी उन्नति कर सकती है।
लिपि
जिसे हिन्दुस्तानी कहते हैं, अर्थात् जिसमें फ़ारसी-अरबी के क्लिष्ट शब्दों का जमघटा नहीं रहता, वह तो देवनागरी लिपि में लिखी जा सकती ही है। उसकी तो कुछ बात ही नहीं। जिसे