उर्दू कहते हैं––जिसमें आजकल मुसल्मान और उर्दू दाँ हिन्दू अख़बार और साधारण विषयों की पुस्तकें लिखते हैं––वह भी देवनागरी लिपि में लिखी जा सकती है। पर डाकृर ग्रियर्सन की राय है कि वह नहीं लिखी जा सकती। खेद है, हमारी राय आप की राय से नहीं मिलती। कुछ दिन हुए इस विषय पर हमने एक लेख सरस्वती में प्रकाशित किया है और यथाशक्ति इस बात को सप्रमाण साबित भी कर दिया है कि उर्दू के अखबारों और रिसालों की भाषा अच्छी तरह देवनागरी में लिखी जा सकती है, और लेख का मतलब समझने में किसी तरह की बाधा नहीं आती। मुसल्मान लोग अपने अ़रबी-फ़ारसी के धार्मिक तथा अन्यान्य ग्रन्थ आनन्द से फ़ारसी, अ़रबी लिपि में लिखें। उनके विषय में किसी को कुछ नहीं कहना। कहना साधारण साहित्य के विषय में है जो देवनागरी लिपि में आसानी से लिखा जा सकता है। देवनागरी लिपि के जाननेवालों की संख्या फ़ारसी लिपि के जाननेवालों की संख्या से कई गुना अधिक है। इस दशा में सारे भारत में फ़ारसी लिपि का प्रचार होना सर्वथा असम्भव और नागरी का सर्वथा सम्भव है। यदि मुसल्मान सज्जन हिन्दुस्तान को अपना देश मानते हों, यदि स्वदेश-प्रीति को भी कोई चीज़ समझते हों, यदि एक लिपि के प्रचार से देश को लाभ पहुँचना सम्भव जानते हों तो हठ, दुराग्रह और कुतर्क छोड़कर उन्हें देवनागरी लिपि सीखनी चाहिए।
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