पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टम भाग.djvu/१५

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जन्मकृत-जन्मविधि जन्मात् (मपु०) जन्म लक्षिप् पित्वात् तुगागः1 मध्ये आसन्नमव्ये विश्वेश्वरे विश्वासरे ऊर्जितपुण्ये तो पिता, जन्मदाता। . मिनमाता जिनमाता स्वाहा ।" (सैन भादिपुराण ) । अन्ममिया (जन्ममस्कार )-जनों के पोडश संस्कारों से . . . जातकर्म देशो। - एक मस्कार। इसका हितीय नाम प्रियोगवसंस्कार है। नमक्षेत्र (सं० लो०) जन्मनः क्षेत्र । जम्मभूमि, जन्मस्थाम। यह मंस्कार बालकके जन्मग्रहणके दिन किया जाता है। जन्मग्रहण ( स० पु. ) उत्पत्ति। • हम दिन ग्रहस्थाचार्य वा कोई दिन घरमें देवगास्त्र जन्मज्येष्ठ ( स० वि०) जन्मना जाष्ठः। प्रथमजात, नो गुरुकी पजा करते हैं। अनन्तर सात पीठिका मन्त्र | मनसे पहले पैदा हुआ हो। पर्यन्त होम होनेके बाद इस.मन्त्रको पढ़ कर पाहुति दी | जन्मतिथि ( स० पु. स्त्री.) जन्मन उत्पत्ते रितथि: कोन्न जाती है। विशेष: ६.तत् । १ वह तिथि जिसमें जन्म हुआ हो, . "दिव्यनेमिजयाय स्वाहा । परमनेनिविजयाय स्वाहा । थाहस्य | जन्मदिन । २ उसको सजातीय तिथि। स्तोलिङ्गमें- नेमिविजयाय स्वाहा ।" विकल्पसे डीय होता है ! जन्मतिथी, वर्ष गांठ । भनन्तर नवजात शिशुके शरीर पर प्रहंत-मति फा प्रतिवर्ष जन्मतिथिके दिन जम्मतिधिकृत्य करना गन्धोदक छिड़क दैवं पौर यालकका पिता इस प्रकार | चाहिये । तिथितत्वमें जन्मतिविनय और उमको व्यय कहता हुमा धागीर्वाद दे- स्थाके सम्बन्धमें इस प्रकार लिखा है- . . "कुलजातिययोरूपगुणे: शोलप्रप्रान्वयः। जहां पहले दिन नचावयुमा तिपिका लाभ हुधा हो. भाग्याविधयत साम्यतिः समधिष्ठिता ॥ और दूमरे दिन सिर्फ तिथि ही रहतो ही, यहां पहले सम्यग्दृष्टिस्तथाम्नेयमतत्वमपि पुत्रकः । दिन, तथा जहां दोनों ही दिन नक्षत्रवजिन तिथि हो, सीतिमापनहि श्रीणि प्र.प्य यकायनुफमात् ।" वहाँ दूमरे दिन जन्मतियि मानी जाती है। इसके बाद दुग्ध और तमे बने हुए अमृतमे शिशुको जिम वर्ष जन्ममाममें जन्मतिथि जन्मनक्षमता नाभिकी मींचना चाहिये। नाल काटते समय यह मन्च हो, उम वर्ष सम्मान, सुष्य और सुरथता लाभ होता है। योला जाता है-"पाविषयो मष श्रीदेव्यः तेजातकिपा ___ शनिवार या मङ्गलबार में यदि जन्मतिथि पड़े, पीर कुर्वन्न ।" मनन्तर बालकको म्रान करा, मन्त्र इस प्रकार | उममें यदि जन्मनक्षवका योग न हो तो उस वर्ष पद है-"मदिराभिषेका भय ।" फिर पिताको उस परतण्डन | पदमें वित पाया करते है। ऐमा होने पर सर्वाषधि मिक्षेप करना चाहिये, मन्त्र-"चिरजीवयात्" इसके मिश्रित जन्नमें स्नान, देवता, नयग्रह पोर प्राधणोंकी याद पितामाता भीर कुटुम्मियों को मिल यालक के मुंहमें पर्चना करनेमे गान्ति होती है। पार दोपकी गान्तिक पीपधियिषट त लगाना चाहिये, म-"नश्यात् लिए मोतो तथा जन्मनक्षत्रका योग न होने पर उसकी ममतं करन।" . फिर यालकका मुंह माताके स्तनसे शान्ति के लिए काञ्चन दान करना पड़ता है। . लगाना चाहिये, मन्त- जन्मतिधिकरय, गौण चान्द्रमामका उग्य हुमा भधारतन्यगागीभूयात् । " उस दिन यथागति | करता है। यदि किसी वपं मौद महोनम जन्ममास दान देना चाहिये चौर वालकके. नानको किमी धान्य पड़ जाय, तो उम मासको त्याग कर पान्द्रमाम जन्म. गानी पदिय भूमिमें गाड़ देना चाहिये । भूमि खोदने- तिथिका अनुष्ठान करना चाहिये। . का मम्ब-"माटे माग पगन्धरे या " गई में जन्मतिधिके दिम तिलका तेल या तिनको योस फर पांचोर के पास रस मिधेप कर एवं यद म पढ़ते | गरीर में लगाना चाहिये घोर तिलयुश जनमे स्नान कर हुए कि, "सत्पुषा व मात्रा भूपास्यचिरमीपिना।" नाल | सिलदान, तिनोम, तिनापन और सितमसमा करना गाई देव । पर वानकी माताको छणा ससमे मान पाहिये। इस प्रकार तिन व्यवहार करनेमे किमी कराना चाहिये। मंत्रया -"मगरे सम्माटे माहलप्रकारको प्रायत्ति नहीं पाती। . . ..