पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टम भाग.djvu/२०४

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उम पर पौला रङ्ग और जिसमें एक मस्त ल है उस पर । मारतयामी प्रपनी आखें बलि' पोर पुनः जहालका नीला रङ्ग चढ़ाना चाहिए । जहाजका मुंह नाना | व्यवमायमें प्रत्त हो। प्राकारोंका हो सकता है। यथा- पाश्चात्य जगत, जहाजका कमविकाश-मिमर के प्राचीन केशरी महिषी नागो द्विरदो पाघ्र एव च। तम चिोंमे जहाजको प्रारूति देखनेमे पाती है। पक्षी भेको मनच एतेषां वदनापम् ॥" उनमें भी, तम्तोको जोड़ कर पीर पाल चढ़ा कर कुछ इसके अलावा महाजको पौर मी खूबधा बनाने के । डाँडोमे जहाज सेते देखा जाता है। प्राचीन स्थापत्य. लिए मोती और मोनेके हार भी लटका दिये जाते थे। शिपसे ग्रीक चौर रोमककि जहाजोंक सम्बन्ध में लो जहाजके भीतर कमरे (वा कैसिन ) मी होते थे और कुछ माल म हुमाई, उसमे ज्ञात होता है कि उनके उनके तोन भेद ये-(१) मवमन्दरा, इसमें जहाजके | जहाज बिल्कुल या मध्यभागमएने होते थे। नहान इस शोरम लगा कर सम छोर तक सयंत्र कमरे होते । बहुत छोटे होते थे और जाड़े के मौसममें किनारे पर थे, (२)मध्यमन्दिग और (३) अग्रमन्दिरा। ये नहाज रख दिये जाते थे । रोमन लोग देवदार काठका महाज किस काम के लिए व्यास होंगे इसका भोजोने नियम बनाते थे, परन्तु युद्ध के जहाज पीक काठमें ही बनाये बनाया था- जाते थे। कहा जाता है, कि रोमकोंने कईं जके फिनी. "चिरप्रवाण्यापारणे को पनाययं ।" सिय पिकामे महान बनानेको तरकीब सोखी यो। सुदीर्घ प्रयास करने के लिए प्रथवा युद्धकार्य मे इन प्य निक युके समय लव कर्य जर्क जहाज इटलों के जहाजों का व्यवहार होना चाहिये। हमारे देशर्म | उपकलभागको कर रहा था, उस समय उनको महान पर चढ़ कर जलयुद्ध होता था, यह बात फैदिक । बाधा पहुंचाने के लिए रोमने रणतरी धनानका नियय साहित्य में तय पिक उपाख्यानमे तथा लोकिक साहित्य- किया था। फजका एक टूटा जहान यज्ञात समुद्रक में रघुकी दिग्विजय गोर रामायण के वर्ताको कहानीमे | किनारे पड़ा था, उसे देख कर इस प्रमोम उद्यमशील भनोमांति माल म हो मकती है। शिलालेख भोर तामा वातिने पहले पहले रपतरी बना डाली। उस जहाजमे लिपिमें भी समुद्री जहाजके, "सन्धायार" स्थापन | एक नजीर लगाई गई घो, जिससे शव पोट जहाज बहुतसे उदाहरण मिलते है। फ'मा करवा दिये जाते थे। जिस देशमें सभ्यताके प्रथम उदय कालसे ही जहाज रोमको भवनतिके बाद नीरवेक दु:माहसिक और. का व्यवहार होता पाया है, जहाक नहाज कितने हो । पुरुपनि जहाज बनाने के विषयमें पहुत कुछ उमति को। समुद्र पौर महाममुद्रक उत्कट जन्नराशिको पतिक्रम | उनके छोटे छोटे नहाज पटलाटिक महासागरमें ही कर परय, फारस, वैविलन आदि दूर देगों में पहुंचे थे। कर पामानौसे पाया जाया करते थे। उनका ममुद्र पर अकि जहाज पर चढ़ कर परिमाजकगण धोन और भाधिपत्य देख कर लोग उनकी "ममुद्रका राजा" कहा मिल पाया जाया करते धैः पाज उसी देशमें कचित् करते ।१८८.१.में नौरव के मंडफोडे नामक स्थानमें कहीं दी एक छोटे लहाज भी उनसे कांगे या नहीं, उन्हें जमीन खोदते खोदते एका जहाज मिला था, जिस इसमें सन्देह है। हमारे देशमें जो करोड़ों रुपयेको । को लम्बाई ७८ फुट चौड़ाई १७ फुट और चार ॥ घोज यातपातो हैं, १६ प्रगर देशोय जहाजों पर भातो फुट थो। इसमें तीन डांड और ४. पुटचा एक मस्तम तो देशका वातसा धन देशमें ही रह जाता मोर चो] था. जिम पर मम्भवतः चीखटा पान चढ़ाया जाता था। भी सम्ने दामों में मिलती। परन्तु भारतवामो आलस्य इंग्ल गड राजा पलाउने पानीममे ने कर माठ डॉ भरी निद्रामे मुंह नहीं मोड़ते. दिनों दिन वे उमोको वाले जहाजका प्रयतन कर नीरव दस्युमावापत्र 'समुद्र • शरण लेते जा रहे है। प्राचीन भारतके जहाजोंको रानों के हायमे देगको रक्षा को। कम्युटने जिम जहा. गोरव गाया यहा रसी भागामे गाई गई है कि, पत्र भो । लोके द्वारा इम्त एड प्रोता था उनमें कुन ८. पादमीने Vol. VIH.46