पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टम भाग.djvu/२०७

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१८४ जहान-जहानदारशाह प्रताप सिंहम कुछ पनयन होने पर वे दिल्ली-दरवार १६४८ ई में १.५८ (हिजरा ! मानपारा गमने गये थे। तृटोय १८वीं गताप्दोको थोड़े समय तक कमसे कम ५ ला व रुपये लगा कर पागा दुर्गझे पाम एक यद नगर गाहपुर नरेश अधिकारमें रहा और १८०८ लाल पत्थरको मसजिद वमबाई यो ने अपने भाई ई.को कोटा प्रमिड दोवान शालिम सिंहने अधिकार पालमगोरके राजत्व कालमें १०८२ हिजरा से रमः । किया । १८१८ ई० को दृष्टिग गवर्नमेण्टके मध्यस्थ होने | जान तारोको (१५८० • ता. ५ मेम्बर) रम पर उदयपुरन फिर जहाजपुर पाया। इस जिलेमें १ मंसारमे विदा ले लो। जहाँनपाराको पता पर विगेर नगर और ३०६ गांव है। भक्ति यो और वे पतियय कश्यपरायणा थीं। इसको नहाजो (प० वि०) जहाजमें मंबन्ध रखनेयास्ता ।। यदम रोगनपाराका चरिय इनमे विल ल उन सा था। जहान ( फा० पु.) जगत् संमार, दुनियाँ। रोगनपारा अपने पिताको मिहामनणात कराने के लिए महानक ( म० पु. ) जहाति शीलार्य हा गानय समायां | पोराजयको उत्साहित करतो यो पोर मगे . कन् । प्रनय, अध्यागड का नाग। 1. जहान माग अपने ह पिताको कारावाममें भी साम्पना जहानपारा बेगम यादगाइ पाहजहांकी पोरत और उम | देती और उनकी मेवा सय पा करने के लिए घर के वीर पामफ खाकी पुत्रो । मुमताजमहलके गर्भ मे रहती थी । जहान पारा कवके अपर मकैद मंगमरमर १५१४ १.०में २३ मार्च बुधवारके दिम जहानपाराका | पत्यरको एक ममजिद बनी है और उसके अपर फारमोने जन्म दुप्रा था । उम समयको सियों में यह राजकुमारी | एक इमारत लिखो है, जिसका अभिप्राय रम प्रकार :- मचरिता, तोहाधिमम्पया, लज्जागोला, उदागदया, "कोई भो मेरी कन पर हरे रंगके पत्तो पादिश मिया विदुषो भीर प्रत्यन्त रूपवतो समझो जाती यो। हिजरा पौर कुछ न बखेरें, क्योंकि निरभिमान व्यक्तियों की सा १ ५४ महरम २७ तारीखको रात्रिक समय, जब ये पर इसीकी शोभा है।" इसके पगलमें लिया :- पपने पिताके पामगे अपने घर लौट रही थी, उस चिमतौके पुण्यात्मानों की लिन पोर मामीको ममय एक जलते हुए प्रदीपमे मग कर उनको पोशाक कन्या विलासिनी फकोर नहानपारा बेगम, १२ जल उठी। ये मलिन्को यनो दुई पोगाक पहन पी। हिजरामें मानप-तोला समाम की। देखते देखते उनकी पोगाक तमाम जल गई. उनका जीवन जहानातून-एक ममिह रमपी । प्रथम सामी मर . साटमें पड़ गया। इतने पर भी इन्होने किमो सरहको आने पर इनका मिराजले शासनकर्धा मा पार स. पायाज न दी। पयो कि ये समझती थीं कि चिक्षाने मे | हाके सचिव प्रमीनठहोनके साप रिसोय परिक्षय पामके युवकगण पाकर उन्हें पनाहम भवस्थाम देखेंगे पाया। यह बहुत खूबमरत पर कविता बना मकत' पोर पाग बुझाने के बहाने, मम्भय से घरोर पर भी हाय | ची। भगायेगे। जल्दी मे वे पम्त:पुरकी सरफ पदी पोर वहां अहानदारयाद-दिनोंके भादगार बहादुरगाट पर पते की होगोकर गिर पड़ीं। बहुत दिनों तक पुत्र। वहादुरगाहको गत्य के उपराना १०१२ में उनके जोपनको कोई पागा नहीं घो। पनेक चिकि- उनके जहानदार, पाशिम उग-गान, रफी शान सकको दिपा कर जम कुछ फन न हुपा म गाड पोर पोझास्तान पार पुयो में परमर राज्यको से समानम बासटम नामक एक चिकिरमकको कर झगड़ा होने मगा। पाशिम् उग गाम बहादुर बुलाया नमे रामकुमारीका माश्य पच्छा हो गया। गाहके २य पुत्र थे।दी पर बहादुर माझा विशेष बादाम रम पहारके पुरष्कारपदय उग्मतादय | स्नेह या पोर उनके जीवित प्रयम्मा ये बस ममय रको उनकी प्रार्गमा पशुमार गंग्रेज पगिकीको राप्रकार्य में व्याप्त रहते थे। वादगारकी मृत्यु के बाद मुगन गामापन विमा गएकई बानिय करमेको पाजिम उग गानने की मिटामम पर पधिकार कर समद प्रदान को। | नियम पर तीनों भाइयों ने मिस कर तिर